लेखमाला के पिछले क्रम में मात्रा गणना पर
चर्चा समाप्त की गई थी, सिलसिलेवार ढंग से मात्रा गणना पर चर्चा के दौरान
जिन लोगों ने प्रतिक्रिया के द्वारा चर्चा को आगे बढ़ाया और संशोधन तथा नए
तथ्यों के द्वारा लेख को समृद्ध किया उनके प्रति विशेष आभार|
आज तक्तीअ के द्वारा मात्रा गणना के कुछ व्यवहारिक पक्षों पर चर्चा होगी| पिछले लेखों में मुफरद मुज़ाहिफ बहर और मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर पर संक्षिप्त चर्चा हो चुकी है इसलिए मुफरद सालिम के साथ साथ इन बहरों के कुछ उदाहरण भी शामिल कर लिया गया है
कुछ बहरें ऐसी होती हैं जिनमें कुछ विशेष छूट मिलाती है उन छूट को इंगित कर दिया है | लेख का मूल उद्देश्य तक्तीअ को व्यावहारिक रूप से समझना मात्र है, विस्तार से बातें फिर कभी...
लेख को तक्तीअ में बहर भेद अनुसार चार भाग में विभाजित किया गया है
अ) मुफरद सालिम
ब) मुफरद मुज़ाहिफ
स) मुरक्कब मुज़ाहिफ
द) मात्रिक बहर
(बहर के भेद को जानने के लिए पिछले लेख पढ़ें)
आईये तक्तीअ करें ...
सर्वप्रथम बहर में मिलाने वाली मुख्य छूट याद रखें जो सभी बहर में मिलाती है -
सभी बह्रों में हम अर्कान के अंत में एक अतिरिक्त लघु ले सकते हैं अर्थात यदि अरकान है - २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२ तो इसे हम २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२+१ भी कर सकते हैं यह छूट खूब प्रचिलित हैं और कई दफे शाइर इससे बड़े फ़ाइदे उठता है विशेष बात यह है कि इस छूट को एक बार किसी मिसरे में लेने पर अन्य मिसरों में इसे दोहराने की कोई बाध्यता नहीं है अर्थात हम ग़ज़ल में किसी भी मिसरे में इसे ले सकते हैं और अन्य मिसरों में इसे लेना अनिवार्य नहीं होगा, इसका उदाहरण हम कई ग़ज़लों को तक्तीअ करते हुए देखेंगे
नोट - तक्तीअ में जहाँ मात्रा को गिराया गया है उस अक्षर + मात्रा को बोल्ड कर दिया है
अ) मुफरद सालिम बहरें
ग़ज़ल (१) = (१२२ / १२२/ १२२/ १२२) (बहर-ए-मुतकारिब की सालिम सूरत)
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अज़ल मर गई तू कहाँ आते आते
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
नहीं खेल ऐ दाग यारों से कह दो
कि आती है उर्दू जबां आते आते
दाग़ देहलवी (मैकदा सलाम करे, पृष्ठ - १०३)
तक्तीअ (१) =
फिरे रा/ ह से वो / यहाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
अज़ल मर / गई तू / कहाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
मुझे या / द करने / से ये मुद् / दआ था
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
निकल जा / ए दम हिच / कियाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
नहीं खे / ल ऐ दा / ग यारों / से कह दो
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
कि आती / है उर्दू / जबां आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
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ग़ज़ल(२)=(१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२)(बहर-ए-हजज की सालिम सूरत)
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है
नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है
मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - ३७)
तक्तीअ (२) =
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
(नकाब उलटे को अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे १२२२ माना गया है)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
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ग़ज़ल (३) = (११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२) (बहर-ए-कामिल की सालिम सूरत)
मुझे अपनी पस्ती की शर्म है, तेरी रिफअतों का ख्याल है
मगर अपने दिल का मैं क्या करूं इसे फिर भी शौके विसाल है
उन्हें ज़िद है अर्ज़-ए-विसाल से, मुझे शौक-ए-अर्ज-ए-विसाल है
वही अब भी उनका जवाब है वही अब भी मेरा सवाल है
वो खुशी नहीं है वो दिल नहीं, मगर उनका साया सा हमनशीं
फकत एक गमज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
अख्तर शीरानी (प्रतिनिधि शाइरी: अख्तर शीरानी, पृष्ठ - ५१)
तक्तीअ (३) =
मुझे अपनी पस् / ती की शर्म है,/ तेरी रिफअतों / का ख्याल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
मगर अपने दिल / का मैं क्या करूं / इसे फिर भी शौ / के विसाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(मगर अपने को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रप/ने ११२१ गिना गया है)
उन्हें ज़िद है अर् / ज़े विसाल से,/ मुझे शौके अर् / जे विसाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
वही अब भी उन / का जवाब है / वही अब भी मे / रा सवाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
वो खुशी नहीं / है वो दिल नहीं,/ मगर उनका सा/ या सा हमनशीं
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(मगर उनका को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रुन/का ११२१ गिना गया है)
फकत एक गम/ ज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(फकत एक को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/ते/क ११२१ गिना गया है)
(फकत इक़ को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/तिक ११२ गिना गया है)
{ध्यान दें कि इस ग़ज़ल के तीन अशआर में कुल ७२ लघु मात्राएं हैं जिनमें से ३१ मात्राओं को गिराया गया है जिसके कारण इस बहर को पढ़ने का अभ्यास न होने पर अटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है इसलिए मात्रा को कम से कम गिराना चाहिए, मगर मात्रा गिराने की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है}
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ग़ज़ल (४) = (२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२) (बहर-ए-रजज की सालिम सूरत)
अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये
जो ढो चुके हैं इल्म की गठरी अदब की बोरियां
वह आ रहे हैं मंच पर बन कर विदूषक देखिये
जनता के सेवक थे जो कल तक आज राजा हो गये
अब उनकी ताकत देखिये उनके समर्थक देखिये
- वीनस केसरी
तक्तीअ (४) =
अब हो रहे / हैं देश में / बदलाव व्या / पक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
शीशे के घर / में लग रहे / लोहे के फा / टक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
जो ढो चुके / हैं इल्म की / गठरी अदब / की बोरियां
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
वह आ रहे / हैं मंच पर / बन कर विदू / षक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
जनता के से/ वक थे जो कल / तक आज रा / जा हो गये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
अब उनकी ता/ कत देखिये / उनके समर् / थक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
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ब) मुफरद मुज़ाहिफ बहरें
ग़ज़ल (५) = (२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तेहार
रोज अखबारों में पढ़ कर ये ख्याल आया हमें
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले बहार
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार
- दुष्यंत कुमार, (साए में धूप, पृष्ठ -६३)
तक्तीअ (५) =
(यह एक गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल है अर्थात इसमें रदीफ़ नहीं है और कई मिसरों के अंत में अतिरिक्त लघु लिया गया है इसे तक्तीअ में अंडर लाइन तथा मात्रा में +१ के द्वारा दर्शाया गया है)
अब किसी को / भी नज़र आ / ती नहीं को / ई दरार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
घर की हर दी / वार पर चिप / के हैं इतने / इश् तेहार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
रोज अखबा / रों में पढ़ कर / ये खयाल आ / या हमें
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
(खयाल आया को अलिफ़ वस्ल द्वारा ख/या/ला/या १२२२ गिना गया है)
इस तरफ आ / ती तो हम भी / देखते फस् / ले बहार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
मैं बहुत कुछ / सोचता रह / ता हूँ पर कह / ता नहीं
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
बोलना भी / है मना सच / बोलना तो / दरकिनार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
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ग़ज़ल (६) = (२१२२ / २१२२ / २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
सिर्फ अश्कों को परेशानी रही
गम बयां करने में आसानी रही
ज़िंदगी भर अक्ल के हामी रहे
अब समझते हैं कि नादानी रही
रफ़्ता रफ़्ता खुद के आदी हो गये
कुछ दिनों तक तो परेशानी रही
मनीष शुक्ला (ख़्वाब पत्थर हो गये, पृष्ठ -३)
तक्तीअ (६) =
सिर्फ अश्कों / को परेशा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
गम बयां कर / ने में आ सा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
ज़िंदगी भर / अक्ल के हा / मी रहे
२१२२ / २१२२ / २१२
अब समझते / हैं कि नादा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
रफ़् ता रफ़्ता / खुद के आदी / हो गये
२१२२ / २१२२ / २१२
कुछ दिनों तक / तो परेशानी / रही
२१२२ / २१२२ / २१२
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ग़ज़ल (७) = (१२२२ / १२२२ / १२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है
न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - २४)
तक्तीअ (७) =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
१२२२ / १२२२ / १२२
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी २२२ गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
१२२२ / १२२२ / १२२
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
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ग़ज़ल (८) = (२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
आखों में भड़कती हैं आक्रोश की ज्वालाएं
हम लांघ गये शायद संतोष की सीमाएं
पग पग पे प्रतिष्ठित हैं पथ भ्रष्ट दुराचारी
इस नक़्शे में हम खुद को किस बिंदु पे दर्शाएं
वीरानी बिछा दी है मौसम के बुढ़ापे ने
कुछ गुल न खिला डालें यौवन की निराशाएं
एहतराम इस्लाम (है तो है, पृष्ठ -७)
तक्तीअ (८) =
आखों में / भडकती हैं / आक्रोश / की ज्वालाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
हम लांघ / गये शायद / संतोष / की सीमाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
पग पग पे / प्रतिष्ठित हैं / पथ भ्रष्ट / दुराचारी
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
इस नक़् शे / में हम खुद को / किस बिंदु / पे दर्शाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
वीरानी / बिछा दी है / मौसम के / बुढ़ापे ने
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
कुछ गुल न / खिला डालें / यौवन की / निराशाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
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एक अन्य छूट जो हमें कई बहरों में देखने को मिलाती है -
एक नियम याद रखें - जिन अर्कान का अरूज़-ओ-ज़रब (आख़िरी रुक्न) मात्र २२ होता है उन सभी बहर के आख़िरी रुक्न को किसी भी मिसरे में २२ के स्थान पर ११२ भी किया जा सकता है
उदाहरण - २१२२ / ११२२ / २२ को ग़ज़ल के किसी भी मिसरे पर
२१२२ / ११२२ / ११२ कर सकते हैं
ग़ज़ल (९) = (२१२२ / ११२२ / २२ ) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
किस्मत अच्छी है कि घर जाते हैं
राह में सैकड़ों मर जाते हैं
सरफराज़ी में मज़ा बेशक है
लेकिन इस खेल में सर जाते हैं
ए मुज़फ्फ़र कई उस्ताद -ए- सुखन
मेरे अशआर कुतर जाते हैं
मुज़फ्फ़र हनफ़ी (मुज़फ्फ़र की ग़ज़लें पृष्ठ - १०३)
तक्तीअ (९) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
किस्मत अच्छी / है कि घर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
(किस्मत अच्छी को अलिफ़ वस्ल द्वारा किस्/म/तच्/छी २१२२ गिना गया है)
राह में सै / कड़ों मर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
सरफराज़ी / में मज़ा बे / शक है
२१२२ / ११२२ / २२
लेकिन इस खे / ल में सर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
('लेकिन इस' को अलिफ़ वस्ल द्वारा ले/कि/निस २१२)
ए मुज़फ्फ़र / कई उस्ता/ दे सुखन
२१२२ / ११२२ / ११२
मेरे अशआ / र कुतर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
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ग़ज़ल (१० ) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
- निदा फाज़ली
तक्तीअ (१०) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
विशेष - इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं| यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं, एक यह है दूसरी बहर का जिक्र क्रम ९ में होगा
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
अपना ग़म ले / के कहीं औ / र न जाया / जाये
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
घर में बिखरी / हुई चीज़ों / को सजाया / जाये
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
बाग में जा / ने के आदा / ब हुआ कर / ते हैं
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
किसी तितली / को न फूलों / से उड़ाया / जाये
११२२ / ११२२ / ११२२ / २२
घर से मस्जिद / है बहुत दू / र चलो यूँ / कर लें
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
किसी रोते / हुए बच्चे / को हँसाया / जाये
११२२ / ११२२ / ११२२ / २२
ग़ज़ल (११) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
रंग उड़ता हुआ बिखरे हुए गेसू तेरे
हाय वो रात कि थमते न थे आँसू तेरे
अगले वक्तों की सी तहज़ीब है पहनावे में
फिर भी सौ तरह से बोल उठते हैं जादू तेरे
कुछ बता पैकर-ए-तकदीस-ए-हया सुबह-ए-अज़ल
किन बहानों से तराशे गये पहलू तेरे
शाज़ तमकनत (आवाज़ चली आती है, पृष्ठ - ३७)
तक्तीअ (११) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
रंग उड़ता / हुआ बिखरे / हुए गेसू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
हाय वो रा / त कि थमते / न थे आँसू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
अगले वक्तों / की सी तहज़ी / ब है पहना / वे में
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
फिर भी सौ तर / ह से बोल उठ/ ते हैं जादू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
(मिसरे में तरह१२ को तर्ह२१ वज्न पर बांधा गया है जो कि उचित है)
(बोल उठते को अलिफ़ वसल द्वारा बो/लुठ/ते २२१ गिना गया है)
कुछ बता पै/ करे तकदी / से हया सुब / हे अज़ल
२१२२ / ११२२ / ११२२ / ११२
किन बहानों / से तराशे / गये पहलू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
(शे'र के मिसरा-ए-उला में बहुत खूबसूरती से बिना मात्रा गिराए इस कठिन बहर को निभाया गया है)
मुफरद सालिम तथा मुफरद मुज़ाहिफ बहरों के अशआर की तक्तीअ की गई अब मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों तथा मात्रिक बहर के कुछ अशआर की तक्तीअ करेंगे
मगर उससे पहले मुरक्कब बहर के बारे में संक्षेप में बात कर ली जाए -
मुरक्कब बहर - 'मुरक्कब' का शाब्दिक अर्थ होता है "मिश्रित"| जब हम किन्हीं दो मूल रुक्न के योग से किसी अर्कान का निर्माण करते हैं तो उसे मुरक्कब अर्कान और उस बहर को मुरक्कब बहर कहते हैं
जैसे - १२२२ (हजज का मूल रुक्न) तथा २१२२ (रमल का मूल रुक्न) के योग से एक अर्कान बनाते हैं -
१२२२ / २१२२ / १२२२ / २१२२
अर्थात
हजज / रमल / हजज / रमल
तो यह एक मुरक्कब बहर है
(इस बहर का नाम मुजारे या मुजारेअ या मुज़ारअ है )
मुरक्कब बहर में जब हम अर्कान से कोई मात्रा को घटा कर उप-रुक्न के द्वारा उप-बहर बनाते हैं तो उसे मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर कहते हैं
मुरक्कब बह्रों की मूल बहर का उपयोग न के बराबर होता है अधिकतर इनकी उप-बहरें ही प्रचिलित हैं
आईये कुछ प्रचिलित मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों की तक्तीअ करें -
स) मुरक्कब मुज़ाहिफ बहरें
ग़ज़ल (१२) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक और वह बेज़ार
या इलाही ये माज़रा क्या है
मैंने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब (महाकवि ग़ालिब पृष्ठ -५५)
तक्तीअ (१२) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं|
यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं,
पहली बहर का अर्कान २१२२ ११२२ ११२२ २२ है जिसका जिक्र पिछले लेख में किया जा चुका है दूसरी बहर यह है जिसमें यह विशेष छूट मिलाती है
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
दिले नादाँ / तुझे हुआ / क्या है
११२२ / १२१२ / २२
आखिर इस दर् / द की दवा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
(आखिर इस को अलिफ़ वस्ल द्वारा आ/खि/रिस २१२ माना गया है)
हम हैं मुश्ता / क और वह / बेज़ा र
२१२२ / १२१२ / २२ +१
या इलाही / ये माज़रा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
मैंने माना / कि कुछ नहीं / ग़ालिब
२१२२ / १२१२ / २२
मुफ्त हाथ आ/ ए तो बुरा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
(हाथ आए को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/था/ए २२१ माना गया है)
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ग़ज़ल (१३) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}
असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता
क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता
(मोमिन खां 'मोमिन')
तक्तीअ (१३) =
असर उसको / ज़रा नहीं / होता
११२२ / १२१२ / २२
(असर उसको... को अलिफ़ वस्ल द्वारा अ/स/रुस/को ११२२ माना गया है)
रंज राहत / फिज़ा नहीं / होता
२१२२ / १२१२ / २२
तुम मेरे पा/ स होते हो / गोया,
२१२२ / १२१२ / २२
जब कोई दू / सरा नहीं / होता
२१२२ / १२१२ / २२
क्यूं सुने अर् / जे-मुज़तरे / ‘मोमिन’
२१२२ / १२१२ / २२
सनम आख़िर / ख़ुदा नहीं / होता
११२२ / १२१२ / २२
(सनम आखिर... को अलिफ़ वस्ल द्वारा स/न/मा/खिर ११२२ माना गया है)
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ग़ज़ल (१४) = (१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२) {मुज़ारे की उप बहर}
कहीं पे सर कहीं खंज़र हवा में उड़ते हैं
हमारे शहर में पत्थर हवा में उड़ते हैं
जिन्हें जमीं पे सलीका नहीं है चलने का
कमाल -ए- फन हैं वो अक्सर हवा में उड़ते हैं
बसद ख़ुलूस तराशे गये थे बुत जिनके
सदाकतों के वो पैकर हवा में उड़ते हैं
रहमत अमरोहवी (इज़ाफा, पृष्ठ - २१)
तक्तीअ (१४) =
कहीं पे सर / कहीं खंज़र / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
हमारे शह / र में पत्थर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
जिन्हें जमीं / पे सलीका / नहीं है चल / ने का
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
कमाले फन / हैं वो अक्सर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
बसद ख़ुलू / स तराशे / गये थे बुत / जिनके
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
सदाकतों / के वो पैकर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
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ग़ज़ल (१५) = (२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२) {मुजारे की उप-बहर}
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब
लाजिम है बारिशों का मियां इम्तेहान अब
मुश्किल सफर है कोई नहीं सायबान अब
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब
कुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं
कुछ अनकहा है उसके मेरे दर्मियान अब
पवन कुमार (वाबस्ता, पृष्ठ -२५)
तक्तीअ (१५) =
उतरा है / खुदसरी पे / वो कच्चा म / कान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
लाजिम है / बारिशों का / मियां इम्ते / हान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
मुश्किल स / फर है कोई / नहीं साय / बान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
है धूप / रास्तों पे / बहुत मेहर / बान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
कुर्बत के / इन पलों में / यही सोच / ता हूँ मैं
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
कुछ अनक / हा है उसके / मेरे दर्मि / यान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
----------------------------------------------------------------
द) मात्रिक बहर
एक मात्र मात्रिक बहर अरूज़ की बहरों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है यह बहर फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर आधारित है
इसका रुक्न २२ होता है जो कि उर्दू बहर में मुतदारिक २१२ से निर्मित माना जाता है और बहर का नाम लिखते (अधिकतर मुतदारिक नाम ही देखने को मिलाता है)
इस मात्रिक बहर को उर्दू ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में असतिज़ा ने इस छंद पर ग़ज़लें कही है
इस बहर में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बहर में २२ को १० -११ बार तक दोहरा कर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ आदि अर्कान भी देखने को मिले हैं
अब आईये इस छंद(बहर) में मिलाने वाली छूट की बात कर लें -
इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है| इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे-
२११ २२ = २२ २२
११२ २२ = २२ २२
इस तरह ही "यहाँ वहाँ"(१२१ २२) को भी मात्रा गिन कर २२ २२ किया जाता है
यहाँ एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो ११ को २ नहीं गिनना चाहिए
इस फेलियर से बचने के लिए लयात्मकता पर ध्यान देना चाहिए
इस बह्र में कुछ स्थान हैं जहाँ १+१ = २ किया जाए तो लय भंग की स्थिति कम से कम होती है और लय तथा सुंदरता से बनी रहती है
अभ्यास के द्वारा यह खुद समझ में आ जाता है कि कहाँ लय टूट रही है
(यदि इस बह्र की और बारीकियां समझनी हैं तो सुप्रसिद्ध शायर विज्ञान व्रत जी को कविता कोष में पढ़े,,,,, उनकी अधिकतर ग़ज़ल इस बह्र पर ही हैं और वहाँ आपको सुन्दर लय के साथ साथ ये सारे जुगाड भी मिलेंगे)
इस बह्र की मशहूर गज़ल के दो शेर लिखता हूँ
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है
किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीश महल में इक इक चेहरा अपना लगता है
न १ + प १ = २
श १ + म १ = २
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आईये तक्तीअ करें
तक्तीअ में जहाँ १+१ = २ किया गया है मात्रा को १+१ लिखा गया है ध्यान से देखें
ग़ज़ल (१६) = (२२/ २२ / २२ / २२ )
जाने क्या कुछ कर बैठा है
बहुत दिनों से घर बैठा है
वो मधुमास लिखे भी कैसे
शाखों पर पतझर बैठा है
जाग चुका है पर आखों में
ख़्वाबों का पैकर बैठा है
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - २७)
तक्तीअ (१६) =
जाने / क्या कुछ / कर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
बहुत दि / नों से / घर बै / ठा है
१२१ / २२ / २२ /२२
वो मधु / मास लि / खे भी / कैसे
२२ / २ १ १ / २२ /२२
शाखों / पर पत / झर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
जाग चु / का है / पर आ / खों में
२ १ १ / २२ / २२ /२२
ख़्वाबों / का पै / कर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
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ग़ज़ल (१७) = (२२/ २२ / २२ / २२)
जुगनू ही दीवाने निकले
अँधियारा झुठलाने निकले
वो तो सब की ही ज़द में था
किसके ठीक निशाने निकले
आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन जख्म पुराने निकले
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - ५९)
तक्तीअ (१७) =
जुगनू / ही दी / वाने / निकले
२२ / २२ / २२ /२२
अँधिया / रा झुठ / लाने / निकले
२२ / २२ / २२ /२२
वो तो / सब की / ही ज़द / में था
२२ / २२ / २२ /२२
किसके / ठीक नि / शाने / निकले
२२ / २ १ १ / २२ /२२
आहों / का अं / दाज़ न / या था
२२ / २२ / २ १ १ /२२
लेकिन / जख्म पु / राने / निकले
२२ / २ १ १ / २२ /२२
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ग़ज़ल (१८) =(२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २)
प्यार का रिश्ता ऐसा रिश्ता शबनम भी चिंगारी भी
यानी उनसे रोज ही झगड़ा और उन्ही से यारी भी
सूना पनघट देख के दिल पे क्या क्या गुजरी थी मत पूछ
हाथ से गिर कर टूट गई थी रंग भरी पिचकारी भी
उसका लहजा देख रहे हो लेकिन ये भी सोचा है
तल्ख बना देती है प्यारे इन्सां को बेकारी भी
अतीक इलाहाबादी (आगमन, पृष्ठ - ३९)
तक्तीअ (१८) =
प्यार का / रिश्ता / ऐसा / रिश्ता / शबनम / भी चिं / गारी / भी
२ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २
यानी / उनसे / रोज ही / झगड़ा / और उ / न्ही से / यारी / भी
२२ / २२ / २ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २
सूना / पनघट / देख के / दिल पे / क्या क्या / गुजरी / थी मत / पू छ
२२ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २ +१
हाथ से / गिर कर / टूट ग / ई थी / रंग भ / री पिच / कारी / भी
२ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २
उसका / लहजा / देख र / हे हो / लेकिन / ये भी / सोचा / है
२२ / २२ / २ १ १/ २२ / २२ / २२ / २२ / २
तल्ख ब / ना दे / ती है / प्यारे / इन्सां / को बे / कारी / भी
२ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २
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आज तक्तीअ के द्वारा मात्रा गणना के कुछ व्यवहारिक पक्षों पर चर्चा होगी| पिछले लेखों में मुफरद मुज़ाहिफ बहर और मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर पर संक्षिप्त चर्चा हो चुकी है इसलिए मुफरद सालिम के साथ साथ इन बहरों के कुछ उदाहरण भी शामिल कर लिया गया है
कुछ बहरें ऐसी होती हैं जिनमें कुछ विशेष छूट मिलाती है उन छूट को इंगित कर दिया है | लेख का मूल उद्देश्य तक्तीअ को व्यावहारिक रूप से समझना मात्र है, विस्तार से बातें फिर कभी...
लेख को तक्तीअ में बहर भेद अनुसार चार भाग में विभाजित किया गया है
अ) मुफरद सालिम
ब) मुफरद मुज़ाहिफ
स) मुरक्कब मुज़ाहिफ
द) मात्रिक बहर
(बहर के भेद को जानने के लिए पिछले लेख पढ़ें)
आईये तक्तीअ करें ...
सर्वप्रथम बहर में मिलाने वाली मुख्य छूट याद रखें जो सभी बहर में मिलाती है -
सभी बह्रों में हम अर्कान के अंत में एक अतिरिक्त लघु ले सकते हैं अर्थात यदि अरकान है - २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२ तो इसे हम २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२+१ भी कर सकते हैं यह छूट खूब प्रचिलित हैं और कई दफे शाइर इससे बड़े फ़ाइदे उठता है विशेष बात यह है कि इस छूट को एक बार किसी मिसरे में लेने पर अन्य मिसरों में इसे दोहराने की कोई बाध्यता नहीं है अर्थात हम ग़ज़ल में किसी भी मिसरे में इसे ले सकते हैं और अन्य मिसरों में इसे लेना अनिवार्य नहीं होगा, इसका उदाहरण हम कई ग़ज़लों को तक्तीअ करते हुए देखेंगे
नोट - तक्तीअ में जहाँ मात्रा को गिराया गया है उस अक्षर + मात्रा को बोल्ड कर दिया है
अ) मुफरद सालिम बहरें
ग़ज़ल (१) = (१२२ / १२२/ १२२/ १२२) (बहर-ए-मुतकारिब की सालिम सूरत)
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अज़ल मर गई तू कहाँ आते आते
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
नहीं खेल ऐ दाग यारों से कह दो
कि आती है उर्दू जबां आते आते
दाग़ देहलवी (मैकदा सलाम करे, पृष्ठ - १०३)
तक्तीअ (१) =
फिरे रा/ ह से वो / यहाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
अज़ल मर / गई तू / कहाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
मुझे या / द करने / से ये मुद् / दआ था
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
निकल जा / ए दम हिच / कियाँ आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
नहीं खे / ल ऐ दा / ग यारों / से कह दो
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
कि आती / है उर्दू / जबां आ / ते आते
१२२ / १२२ / १२२ / १२२
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ग़ज़ल(२)=(१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२)(बहर-ए-हजज की सालिम सूरत)
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है
नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है
मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - ३७)
तक्तीअ (२) =
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
(नकाब उलटे को अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे १२२२ माना गया है)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
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ग़ज़ल (३) = (११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२) (बहर-ए-कामिल की सालिम सूरत)
मुझे अपनी पस्ती की शर्म है, तेरी रिफअतों का ख्याल है
मगर अपने दिल का मैं क्या करूं इसे फिर भी शौके विसाल है
उन्हें ज़िद है अर्ज़-ए-विसाल से, मुझे शौक-ए-अर्ज-ए-विसाल है
वही अब भी उनका जवाब है वही अब भी मेरा सवाल है
वो खुशी नहीं है वो दिल नहीं, मगर उनका साया सा हमनशीं
फकत एक गमज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
अख्तर शीरानी (प्रतिनिधि शाइरी: अख्तर शीरानी, पृष्ठ - ५१)
तक्तीअ (३) =
मुझे अपनी पस् / ती की शर्म है,/ तेरी रिफअतों / का ख्याल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
मगर अपने दिल / का मैं क्या करूं / इसे फिर भी शौ / के विसाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(मगर अपने को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रप/ने ११२१ गिना गया है)
उन्हें ज़िद है अर् / ज़े विसाल से,/ मुझे शौके अर् / जे विसाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
वही अब भी उन / का जवाब है / वही अब भी मे / रा सवाल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
वो खुशी नहीं / है वो दिल नहीं,/ मगर उनका सा/ या सा हमनशीं
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(मगर उनका को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रुन/का ११२१ गिना गया है)
फकत एक गम/ ज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२
(फकत एक को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/ते/क ११२१ गिना गया है)
(फकत इक़ को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/तिक ११२ गिना गया है)
{ध्यान दें कि इस ग़ज़ल के तीन अशआर में कुल ७२ लघु मात्राएं हैं जिनमें से ३१ मात्राओं को गिराया गया है जिसके कारण इस बहर को पढ़ने का अभ्यास न होने पर अटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है इसलिए मात्रा को कम से कम गिराना चाहिए, मगर मात्रा गिराने की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है}
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ग़ज़ल (४) = (२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२) (बहर-ए-रजज की सालिम सूरत)
अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये
जो ढो चुके हैं इल्म की गठरी अदब की बोरियां
वह आ रहे हैं मंच पर बन कर विदूषक देखिये
जनता के सेवक थे जो कल तक आज राजा हो गये
अब उनकी ताकत देखिये उनके समर्थक देखिये
- वीनस केसरी
तक्तीअ (४) =
अब हो रहे / हैं देश में / बदलाव व्या / पक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
शीशे के घर / में लग रहे / लोहे के फा / टक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
जो ढो चुके / हैं इल्म की / गठरी अदब / की बोरियां
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
वह आ रहे / हैं मंच पर / बन कर विदू / षक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
जनता के से/ वक थे जो कल / तक आज रा / जा हो गये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
अब उनकी ता/ कत देखिये / उनके समर् / थक देखिये
२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२
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ब) मुफरद मुज़ाहिफ बहरें
ग़ज़ल (५) = (२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तेहार
रोज अखबारों में पढ़ कर ये ख्याल आया हमें
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले बहार
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार
- दुष्यंत कुमार, (साए में धूप, पृष्ठ -६३)
तक्तीअ (५) =
(यह एक गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल है अर्थात इसमें रदीफ़ नहीं है और कई मिसरों के अंत में अतिरिक्त लघु लिया गया है इसे तक्तीअ में अंडर लाइन तथा मात्रा में +१ के द्वारा दर्शाया गया है)
अब किसी को / भी नज़र आ / ती नहीं को / ई दरार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
घर की हर दी / वार पर चिप / के हैं इतने / इश् तेहार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
रोज अखबा / रों में पढ़ कर / ये खयाल आ / या हमें
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
(खयाल आया को अलिफ़ वस्ल द्वारा ख/या/ला/या १२२२ गिना गया है)
इस तरफ आ / ती तो हम भी / देखते फस् / ले बहार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
मैं बहुत कुछ / सोचता रह / ता हूँ पर कह / ता नहीं
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
बोलना भी / है मना सच / बोलना तो / दरकिनार
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२ +१
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ग़ज़ल (६) = (२१२२ / २१२२ / २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
सिर्फ अश्कों को परेशानी रही
गम बयां करने में आसानी रही
ज़िंदगी भर अक्ल के हामी रहे
अब समझते हैं कि नादानी रही
रफ़्ता रफ़्ता खुद के आदी हो गये
कुछ दिनों तक तो परेशानी रही
मनीष शुक्ला (ख़्वाब पत्थर हो गये, पृष्ठ -३)
तक्तीअ (६) =
सिर्फ अश्कों / को परेशा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
गम बयां कर / ने में आ सा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
ज़िंदगी भर / अक्ल के हा / मी रहे
२१२२ / २१२२ / २१२
अब समझते / हैं कि नादा / नी रही
२१२२ / २१२२ / २१२
रफ़् ता रफ़्ता / खुद के आदी / हो गये
२१२२ / २१२२ / २१२
कुछ दिनों तक / तो परेशानी / रही
२१२२ / २१२२ / २१२
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ग़ज़ल (७) = (१२२२ / १२२२ / १२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है
न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - २४)
तक्तीअ (७) =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
१२२२ / १२२२ / १२२
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी २२२ गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
१२२२ / १२२२ / १२२
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
१२२२ / १२२२ / १२२
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ग़ज़ल (८) = (२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
आखों में भड़कती हैं आक्रोश की ज्वालाएं
हम लांघ गये शायद संतोष की सीमाएं
पग पग पे प्रतिष्ठित हैं पथ भ्रष्ट दुराचारी
इस नक़्शे में हम खुद को किस बिंदु पे दर्शाएं
वीरानी बिछा दी है मौसम के बुढ़ापे ने
कुछ गुल न खिला डालें यौवन की निराशाएं
एहतराम इस्लाम (है तो है, पृष्ठ -७)
तक्तीअ (८) =
आखों में / भडकती हैं / आक्रोश / की ज्वालाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
हम लांघ / गये शायद / संतोष / की सीमाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
पग पग पे / प्रतिष्ठित हैं / पथ भ्रष्ट / दुराचारी
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
इस नक़् शे / में हम खुद को / किस बिंदु / पे दर्शाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
वीरानी / बिछा दी है / मौसम के / बुढ़ापे ने
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
कुछ गुल न / खिला डालें / यौवन की / निराशाएं
२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२
----------------------------------------------------------------
एक अन्य छूट जो हमें कई बहरों में देखने को मिलाती है -
एक नियम याद रखें - जिन अर्कान का अरूज़-ओ-ज़रब (आख़िरी रुक्न) मात्र २२ होता है उन सभी बहर के आख़िरी रुक्न को किसी भी मिसरे में २२ के स्थान पर ११२ भी किया जा सकता है
उदाहरण - २१२२ / ११२२ / २२ को ग़ज़ल के किसी भी मिसरे पर
२१२२ / ११२२ / ११२ कर सकते हैं
ग़ज़ल (९) = (२१२२ / ११२२ / २२ ) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
किस्मत अच्छी है कि घर जाते हैं
राह में सैकड़ों मर जाते हैं
सरफराज़ी में मज़ा बेशक है
लेकिन इस खेल में सर जाते हैं
ए मुज़फ्फ़र कई उस्ताद -ए- सुखन
मेरे अशआर कुतर जाते हैं
मुज़फ्फ़र हनफ़ी (मुज़फ्फ़र की ग़ज़लें पृष्ठ - १०३)
तक्तीअ (९) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
किस्मत अच्छी / है कि घर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
(किस्मत अच्छी को अलिफ़ वस्ल द्वारा किस्/म/तच्/छी २१२२ गिना गया है)
राह में सै / कड़ों मर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
सरफराज़ी / में मज़ा बे / शक है
२१२२ / ११२२ / २२
लेकिन इस खे / ल में सर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
('लेकिन इस' को अलिफ़ वस्ल द्वारा ले/कि/निस २१२)
ए मुज़फ्फ़र / कई उस्ता/ दे सुखन
२१२२ / ११२२ / ११२
मेरे अशआ / र कुतर जा / ते हैं
२१२२ / ११२२ / २२
----------------------------------------------------------------
ग़ज़ल (१० ) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
- निदा फाज़ली
तक्तीअ (१०) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
विशेष - इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं| यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं, एक यह है दूसरी बहर का जिक्र क्रम ९ में होगा
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
अपना ग़म ले / के कहीं औ / र न जाया / जाये
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
घर में बिखरी / हुई चीज़ों / को सजाया / जाये
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
बाग में जा / ने के आदा / ब हुआ कर / ते हैं
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
किसी तितली / को न फूलों / से उड़ाया / जाये
११२२ / ११२२ / ११२२ / २२
घर से मस्जिद / है बहुत दू / र चलो यूँ / कर लें
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
किसी रोते / हुए बच्चे / को हँसाया / जाये
११२२ / ११२२ / ११२२ / २२
ग़ज़ल (११) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)
रंग उड़ता हुआ बिखरे हुए गेसू तेरे
हाय वो रात कि थमते न थे आँसू तेरे
अगले वक्तों की सी तहज़ीब है पहनावे में
फिर भी सौ तरह से बोल उठते हैं जादू तेरे
कुछ बता पैकर-ए-तकदीस-ए-हया सुबह-ए-अज़ल
किन बहानों से तराशे गये पहलू तेरे
शाज़ तमकनत (आवाज़ चली आती है, पृष्ठ - ३७)
तक्तीअ (११) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
रंग उड़ता / हुआ बिखरे / हुए गेसू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
हाय वो रा / त कि थमते / न थे आँसू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
अगले वक्तों / की सी तहज़ी / ब है पहना / वे में
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
फिर भी सौ तर / ह से बोल उठ/ ते हैं जादू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
(मिसरे में तरह१२ को तर्ह२१ वज्न पर बांधा गया है जो कि उचित है)
(बोल उठते को अलिफ़ वसल द्वारा बो/लुठ/ते २२१ गिना गया है)
कुछ बता पै/ करे तकदी / से हया सुब / हे अज़ल
२१२२ / ११२२ / ११२२ / ११२
किन बहानों / से तराशे / गये पहलू / तेरे
२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२
(शे'र के मिसरा-ए-उला में बहुत खूबसूरती से बिना मात्रा गिराए इस कठिन बहर को निभाया गया है)
मुफरद सालिम तथा मुफरद मुज़ाहिफ बहरों के अशआर की तक्तीअ की गई अब मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों तथा मात्रिक बहर के कुछ अशआर की तक्तीअ करेंगे
मगर उससे पहले मुरक्कब बहर के बारे में संक्षेप में बात कर ली जाए -
मुरक्कब बहर - 'मुरक्कब' का शाब्दिक अर्थ होता है "मिश्रित"| जब हम किन्हीं दो मूल रुक्न के योग से किसी अर्कान का निर्माण करते हैं तो उसे मुरक्कब अर्कान और उस बहर को मुरक्कब बहर कहते हैं
जैसे - १२२२ (हजज का मूल रुक्न) तथा २१२२ (रमल का मूल रुक्न) के योग से एक अर्कान बनाते हैं -
१२२२ / २१२२ / १२२२ / २१२२
अर्थात
हजज / रमल / हजज / रमल
तो यह एक मुरक्कब बहर है
(इस बहर का नाम मुजारे या मुजारेअ या मुज़ारअ है )
मुरक्कब बहर में जब हम अर्कान से कोई मात्रा को घटा कर उप-रुक्न के द्वारा उप-बहर बनाते हैं तो उसे मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर कहते हैं
मुरक्कब बह्रों की मूल बहर का उपयोग न के बराबर होता है अधिकतर इनकी उप-बहरें ही प्रचिलित हैं
आईये कुछ प्रचिलित मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों की तक्तीअ करें -
स) मुरक्कब मुज़ाहिफ बहरें
ग़ज़ल (१२) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक और वह बेज़ार
या इलाही ये माज़रा क्या है
मैंने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब (महाकवि ग़ालिब पृष्ठ -५५)
तक्तीअ (१२) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं|
यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं,
पहली बहर का अर्कान २१२२ ११२२ ११२२ २२ है जिसका जिक्र पिछले लेख में किया जा चुका है दूसरी बहर यह है जिसमें यह विशेष छूट मिलाती है
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)
दिले नादाँ / तुझे हुआ / क्या है
११२२ / १२१२ / २२
आखिर इस दर् / द की दवा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
(आखिर इस को अलिफ़ वस्ल द्वारा आ/खि/रिस २१२ माना गया है)
हम हैं मुश्ता / क और वह / बेज़ा र
२१२२ / १२१२ / २२ +१
या इलाही / ये माज़रा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
मैंने माना / कि कुछ नहीं / ग़ालिब
२१२२ / १२१२ / २२
मुफ्त हाथ आ/ ए तो बुरा / क्या है
२१२२ / १२१२ / २२
(हाथ आए को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/था/ए २२१ माना गया है)
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ग़ज़ल (१३) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}
असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता
क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता
(मोमिन खां 'मोमिन')
तक्तीअ (१३) =
असर उसको / ज़रा नहीं / होता
११२२ / १२१२ / २२
(असर उसको... को अलिफ़ वस्ल द्वारा अ/स/रुस/को ११२२ माना गया है)
रंज राहत / फिज़ा नहीं / होता
२१२२ / १२१२ / २२
तुम मेरे पा/ स होते हो / गोया,
२१२२ / १२१२ / २२
जब कोई दू / सरा नहीं / होता
२१२२ / १२१२ / २२
क्यूं सुने अर् / जे-मुज़तरे / ‘मोमिन’
२१२२ / १२१२ / २२
सनम आख़िर / ख़ुदा नहीं / होता
११२२ / १२१२ / २२
(सनम आखिर... को अलिफ़ वस्ल द्वारा स/न/मा/खिर ११२२ माना गया है)
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ग़ज़ल (१४) = (१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२) {मुज़ारे की उप बहर}
कहीं पे सर कहीं खंज़र हवा में उड़ते हैं
हमारे शहर में पत्थर हवा में उड़ते हैं
जिन्हें जमीं पे सलीका नहीं है चलने का
कमाल -ए- फन हैं वो अक्सर हवा में उड़ते हैं
बसद ख़ुलूस तराशे गये थे बुत जिनके
सदाकतों के वो पैकर हवा में उड़ते हैं
रहमत अमरोहवी (इज़ाफा, पृष्ठ - २१)
तक्तीअ (१४) =
कहीं पे सर / कहीं खंज़र / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
हमारे शह / र में पत्थर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
जिन्हें जमीं / पे सलीका / नहीं है चल / ने का
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
कमाले फन / हैं वो अक्सर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
बसद ख़ुलू / स तराशे / गये थे बुत / जिनके
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
सदाकतों / के वो पैकर / हवा में उड़ / ते हैं
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
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ग़ज़ल (१५) = (२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२) {मुजारे की उप-बहर}
उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब
लाजिम है बारिशों का मियां इम्तेहान अब
मुश्किल सफर है कोई नहीं सायबान अब
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब
कुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं
कुछ अनकहा है उसके मेरे दर्मियान अब
पवन कुमार (वाबस्ता, पृष्ठ -२५)
तक्तीअ (१५) =
उतरा है / खुदसरी पे / वो कच्चा म / कान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
लाजिम है / बारिशों का / मियां इम्ते / हान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
मुश्किल स / फर है कोई / नहीं साय / बान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
है धूप / रास्तों पे / बहुत मेहर / बान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
कुर्बत के / इन पलों में / यही सोच / ता हूँ मैं
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
कुछ अनक / हा है उसके / मेरे दर्मि / यान अब
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
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द) मात्रिक बहर
एक मात्र मात्रिक बहर अरूज़ की बहरों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है यह बहर फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर आधारित है
इसका रुक्न २२ होता है जो कि उर्दू बहर में मुतदारिक २१२ से निर्मित माना जाता है और बहर का नाम लिखते (अधिकतर मुतदारिक नाम ही देखने को मिलाता है)
इस मात्रिक बहर को उर्दू ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में असतिज़ा ने इस छंद पर ग़ज़लें कही है
इस बहर में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बहर में २२ को १० -११ बार तक दोहरा कर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ आदि अर्कान भी देखने को मिले हैं
अब आईये इस छंद(बहर) में मिलाने वाली छूट की बात कर लें -
इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है| इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे-
२११ २२ = २२ २२
११२ २२ = २२ २२
इस तरह ही "यहाँ वहाँ"(१२१ २२) को भी मात्रा गिन कर २२ २२ किया जाता है
यहाँ एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो ११ को २ नहीं गिनना चाहिए
इस फेलियर से बचने के लिए लयात्मकता पर ध्यान देना चाहिए
इस बह्र में कुछ स्थान हैं जहाँ १+१ = २ किया जाए तो लय भंग की स्थिति कम से कम होती है और लय तथा सुंदरता से बनी रहती है
अभ्यास के द्वारा यह खुद समझ में आ जाता है कि कहाँ लय टूट रही है
(यदि इस बह्र की और बारीकियां समझनी हैं तो सुप्रसिद्ध शायर विज्ञान व्रत जी को कविता कोष में पढ़े,,,,, उनकी अधिकतर ग़ज़ल इस बह्र पर ही हैं और वहाँ आपको सुन्दर लय के साथ साथ ये सारे जुगाड भी मिलेंगे)
इस बह्र की मशहूर गज़ल के दो शेर लिखता हूँ
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है
किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीश महल में इक इक चेहरा अपना लगता है
न १ + प १ = २
श १ + म १ = २
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आईये तक्तीअ करें
तक्तीअ में जहाँ १+१ = २ किया गया है मात्रा को १+१ लिखा गया है ध्यान से देखें
ग़ज़ल (१६) = (२२/ २२ / २२ / २२ )
जाने क्या कुछ कर बैठा है
बहुत दिनों से घर बैठा है
वो मधुमास लिखे भी कैसे
शाखों पर पतझर बैठा है
जाग चुका है पर आखों में
ख़्वाबों का पैकर बैठा है
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - २७)
तक्तीअ (१६) =
जाने / क्या कुछ / कर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
बहुत दि / नों से / घर बै / ठा है
१२१ / २२ / २२ /२२
वो मधु / मास लि / खे भी / कैसे
२२ / २ १ १ / २२ /२२
शाखों / पर पत / झर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
जाग चु / का है / पर आ / खों में
२ १ १ / २२ / २२ /२२
ख़्वाबों / का पै / कर बै / ठा है
२२ / २२ / २२ /२२
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ग़ज़ल (१७) = (२२/ २२ / २२ / २२)
जुगनू ही दीवाने निकले
अँधियारा झुठलाने निकले
वो तो सब की ही ज़द में था
किसके ठीक निशाने निकले
आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन जख्म पुराने निकले
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - ५९)
तक्तीअ (१७) =
जुगनू / ही दी / वाने / निकले
२२ / २२ / २२ /२२
अँधिया / रा झुठ / लाने / निकले
२२ / २२ / २२ /२२
वो तो / सब की / ही ज़द / में था
२२ / २२ / २२ /२२
किसके / ठीक नि / शाने / निकले
२२ / २ १ १ / २२ /२२
आहों / का अं / दाज़ न / या था
२२ / २२ / २ १ १ /२२
लेकिन / जख्म पु / राने / निकले
२२ / २ १ १ / २२ /२२
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ग़ज़ल (१८) =(२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २)
प्यार का रिश्ता ऐसा रिश्ता शबनम भी चिंगारी भी
यानी उनसे रोज ही झगड़ा और उन्ही से यारी भी
सूना पनघट देख के दिल पे क्या क्या गुजरी थी मत पूछ
हाथ से गिर कर टूट गई थी रंग भरी पिचकारी भी
उसका लहजा देख रहे हो लेकिन ये भी सोचा है
तल्ख बना देती है प्यारे इन्सां को बेकारी भी
अतीक इलाहाबादी (आगमन, पृष्ठ - ३९)
तक्तीअ (१८) =
प्यार का / रिश्ता / ऐसा / रिश्ता / शबनम / भी चिं / गारी / भी
२ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २
यानी / उनसे / रोज ही / झगड़ा / और उ / न्ही से / यारी / भी
२२ / २२ / २ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २
सूना / पनघट / देख के / दिल पे / क्या क्या / गुजरी / थी मत / पू छ
२२ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २ +१
हाथ से / गिर कर / टूट ग / ई थी / रंग भ / री पिच / कारी / भी
२ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २ १ १ / २२ / २२ / २
उसका / लहजा / देख र / हे हो / लेकिन / ये भी / सोचा / है
२२ / २२ / २ १ १/ २२ / २२ / २२ / २२ / २
तल्ख ब / ना दे / ती है / प्यारे / इन्सां / को बे / कारी / भी
२ १ १ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २
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