चेतावनी : लेखक की जानकारी तथा अनुमति के बिना इस ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्रियों का कहीं, किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है | लेखक नामोल्लेख ब्लॉग वर्णन और लिंक दे कर ही आप लेख को उद्धरण के रूप में प्रयोग कर सकते हैं |

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

क्रम - ९ इज़ाफत

इज़ाफत
 
जिस प्रकार हिन्दी में समास द्वारा दो शब्दों को अंतर्संबंधित किया जाता है वैसे ही उर्दू भाषा का अपना नियम है जिसे इज़ाफत कहते हैं और इसके द्वारा दो शब्दों को अंतर सम्बंधित किया जाता है जैसे ‘नादान दिल’ को ‘दिले नादाँ’, कहा जा सकता है |     

इस प्रकार कुछ अन्य उदाहरण देखें -

‘दिल का दर्द’ को ‘दर्द-ए-दिल’
पुर दर्द नग्मा को 'नग्मा-ए-पुरदर्द'
खुदा का जिक्र को 'जिक्र-ए-खुदा'
माशूक का राज़ को 'राज-ए-माशूक'.... आदि

याद रखें -
|- इज़ाफत में 'ए' को ''हर्फ़-ए-इजाफत''  कहते हैं
उदाहरण - 'नग्मा -ए- पुरदर्द' में 'ए' को 'हर्फ़-ए-इजाफत' कहते हैं

||- इजाफत में पहले शब्द को हर्फ-ए-उला कहेंगे
उदाहरण - 'नग्मा -ए- पुरदर्द' में "नग्मा" हर्फ़-ए-उला है

|||- इजाफत में दूसरे शब्द को हर्फ़-ए-सानी कहेंगे
उदाहरण - ' नग्मा -ए- पुरदर्द' में "पुरदर्द" हर्फ़-ए-सानी है


इजाफत दो प्रकार से होती है
१- इजाफत-ए-मक्लूबी
२- इजाफत-ए-खारिजी

१- इजाफत-ए-मक्लूबी - जब इजाफत में दोनों शब्दों के बीच से हर्फ़-ए-इज़ाफत अर्थात 'ए' हर्फ़ लुप्त (साईलेंट) हो जाता है
उदाहरण - खुश्क को चुके लब = लब-खुश्क,  जिसका अंजाम नेक हो = नेक-अंजाम
 
२- इजाफत-ए-खारिजी -जब इजाफत में दोनों शब्दों के बीच हर्फ़-ए-इज़ाफत अर्थात 'ए' हर्फ़ लगाते हैं तो उसे इज़ाफत ए खारिजी कहते हैं
इजफत-ए-खरिजी में तीन प्रकार के शब्द समूह को योजित किया (जोड़ा) जा सकता है
(|) का, के, कि  
(||) विशेषण
(|||) इस्तेलाम

(|) का, के, की - इसमें इजाफी हर्फों के बीच 'का', के, की आदि शब्द का अंतर्संबंध होता है
उदाहरण  -
फन का  कमाल  - 'कमाल-ए-फन' 
ग़ालिब का रकीब - 'रकीब-ए-ग़ालिब' 
दोस्त की आवाज़ - आवाज-ए-दोस्त
गम की शाम - शाम-ए-गम
मैखाना के दर का चराग - चराग-ए-दर-ए-मैखाना... आदि

(||) विशेषण - इसमें दो शब्द में संज्ञा और विशेषण का सम्बन्ध होता है
उदाहरण - "पुरदर्द नग्मा " में नग्मा संज्ञा है और "दर्द भरा" नग्मा का विशेषण है और यह इज़ाफत द्वारा होता है - नग्मा-ए-पुरदर्द  
एक अन्य उदाहरण देखें - 'मुख़्तसर मज़्मून' में मज्मून संज्ञा है और मुख़्तसर होना उसका विशेषण है तो यह होता है = मज़्मून-ए-मुख़्तसर

(|||) इस्तेलाम - जब केवल सूचना देने के लिए इजाफत का प्रयोग करते हैं तो उसे इस्तेलाम कहते हैं
उदाहरण - "लखनऊ शहर" में लखनऊ संज्ञा है शहर होना इसका विशेषण नहीं है, जब हम लखनऊ शहर लिखते हैं तो हम जानकारी देते हैं कि लखनऊ एक शहर है और इज़ाफत द्वारा यह होता है - "शहरे लखनऊ" 

इज़ाफत में मात्रा गणना का नियम देखें -
१) इजाफत के पश्चात उर्दू लिपि में शब्द अंतर्संबंधित (योजित) हो जाते हैं और उनको जोड़ कर लिखा जाता है

उदाहरण - ‘दिल का दर्द’ को ‘दर्दे दिल’ लिखा जाता है| हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न १ होता है

२) इज़ाफत के बाद दोनों शब्दों का क्रम आपस में पलट जाता है जो शब्द बाद में होता है वह पहले आ जाता है और उस पर ही हर्फ़-ए-इजाफत जुड़ता है  
उदाहरण - लखनऊ शहर "शहर-ए-लखनऊ" हो जाता है 

३) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर (जिसके व्यंजन में इजाफत के बाद "ए" स्वर को योजित किया जाता है) यदि लघु मात्रिक हो तो हर्फ-ए-इजाफत जुडने के बाद भी लघु मात्रिक ही रहता है
उदाहरण - "माशूक का राज़" इज़ाफत के बाद "राजे माशूक" हो जाता है इसमें राज़ का वज्न २१ है शब्द का आख़िरी व्यंजन अर्थात ज़ लघु मात्रिक है इसमें 'ए' जुड कर 'ज़े' होता है परन्तु यह फिर भी लघु मात्रिक ही रहता है और राजे माशूक का वज्न है २१ २२१ होता है  
इसका एक और उदाहरण दर्द-ए-दिल है जिसका वज्न २१ २ है
 
४) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि दो व्यंजन के योग से दीर्घ रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर दोनो व्यंजन का जोड़ टूट जाता है और वह दो स्वतंत्र लघु हो जाते
उदाहरण - 'नादान दिल' इज़ाफत द्वारा 'दिले नादाँ' हो जाता है इसमें दिल शब्द दो लघु व्यंजन के योग से दीर्घ मात्रिक है अर्थात इसका वज्न २ है मगर 'ए' जुड कर यह दिले हो जाता है और 'ले' स्वतंत्र लघु होता है इस प्रकार  इसके पहले का "दि" भी स्वतंत्र लघु हो जाता है और दिले नादाँ का वज्न ११ २२ होता है 
इसका एक और उदाहरण "इश्क के काबिल" - काबिले इश्क (२११ २१) है

५) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर  की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है
उदाहरण - 'दीवार का साया' इज़ाफत द्वारा 'सायाए दीवार' हो जाता है इसमें साया २२ पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह पूर्ववत २२ रहता है और 'ए' की लघु मात्रा को अलग से गिनते है  अतः सायाए दीवार का वज्न हुआ - २२१ २२१ 

इसका एक और उदाहरण "शिकवा-ए-गम" है जिसका वज्न २२१ २ है    

उदाहरण स्वरूप कुछ और शब्दों का वज्न देख लें  कमाले फन - १२१ २
मकसदे हयात - २११ १२१
दीदाए तर - २२१ २ 
शहरे लखनऊ - २१ २१२
नग्माए पुरदर्द - २२१ २२१ 

६) इजाफत में एक बड़ी छूट लेते हुए ग़ज़लकार, हर्फ़-ए-इज़ाफत अथवा इजाफती हर्फ़ (जिस व्यंजन में 'ए' जुड़ा है) को लघु मात्रिक से उठा कर दीर्घ मात्रिक भी मान लेते हैं, अर्थात दर्दे दिल(२१२) को दर्२ दे२ दिल२ = २२२ भी किया जा सकता है|

यहाँ छूट के अंतर्गत जब हमें लघु चाहिए तो मात्रा गणना अनुसार लघु गिनते हैं और जब दीर्घ मात्रिक की जरूरत हो तो उठा कर दीर्घ मात्रिक भी मान लेते हैं इसलिए इसे हम मात्रा को उठाना भी कह सकते हैं| और यह कहा जा सकता है कि इज़ाफत में मात्रा उठाने की छूट मिलाती है|

कुछ लोग अज्ञानतावश यह सोचते हैं कि इजाफत में 'ए' दीर्घ मात्रिक होता है और इसे गिरा कर लाघु मात्रिक भी कर सकते हैं, परन्तु यह भूल है, वास्तव में इजाफत में 'ए' की मात्रा लघु होती है और यह जिस व्यंजन के साथ जुड जाये उसे भी लघु कर देता है (जैसा कि नियम २ और ३ में बताया गया है)    

७) इज़ाफत में यदि दूसरे शब्द अर्थात हर्फ़-ए-सानी का अंत न से होता है तो "न" हटा कर उसके पहले के अक्षर में "अं" स्वर जुड जाता है 
जैसे - नादान दिल - "दिल-ए-नादान" नहीं होता बल्कि 'दिल-ए-नादां'(११२२) हो जाता है इसे "दिले नादान" लिखना अनुचित है


याद रखें यदि दूसरा शब्द 'न' से समाप्त हो रहा हो परन्तु वह शब्द संज्ञा हो तो "न" को लुप्त नहीं करते
उदाहरण = मुल्क-ए-हिंदुस्तान
(हिन्दुस्तान एक संज्ञा है इसलिए इसे मुल्के हिन्दोस्तां नहीं लिखंगे)

विशेष ध्यान दें -
# - देवनागरी लिपि में यदि हम “दर्दे दिल” शब्द में से 'दिल' हटा कर ‘दर्दे’ का अर्थ शब्दकोष में खोजें तो यह शब्द नहीं मिलेगा क्योकि शुद्ध शब्द ‘दर्द’ है तथा यदि हम 'ग़ालिब का दीवान' को हिन्दी में 'दीवाने ग़ालिब' लिख दें तो हिन्दी भाषा-भाषी इसका अन्य अर्थ ‘दीवाने हो चुके ग़ालिब’ भी निकाल सकता है, इन स्थितियों से निपटने के लिए उर्दू तथा हिन्दी के विद्वानों ने एक युक्ति खोजी है कि उर्दू के दीवाने ग़ालिब को हिन्दी में हाइफन की सहायता से "दीवान -ए- ग़ालिब" लिखा जाए और पढते समय इसे दीवाने ग़ालिब (२२१ २२) के उच्चारण से पढ़ा जाये इस प्रकार इजाफत को हिन्दी में तोड़ कर लिखते हैं परन्तु ग़ज़ल में ऐसे शब्द का प्रयोग करते समय इजाफत युक्त शब्द को उच्चारण के अनुसार अर्थात बिना तोड़े मात्रा गिनना चाहिए|

उदाहरण - 'दिले नादाँ' को दिल-ए-नादाँ तो लिखेंगे परन्तु इसका वज्न "दिले नादाँ"  के अनुसार ११ २२ होगा तथा जरूरत पडने पर 'ले' को दीर्घ मान कर १२ २२ रखा जा सकता है परन्तु इसे हिन्दी लिखे के अनुसार तोड़ कर वज्न नहीं गिना जा सकता है
अर्थात दिल-ए-नादाँ के अनुसार दिल२ ए१ नादाँ२२ (२ १ २२) अथवा दिल२ ए२ नादाँ२२ (२२२२) नहीं किया जा सकता है यह असंभव है और ऐसा करने पर शेर बे-बहर हो जायेगा
इसी प्रकार ‘दर्द-ए-दिल’ का वज्न २१२ अथवा २२२ हो सकता है| यह दर्द२१ ए१ दिल२ (२१ १ २) अथवा दर्द२१ ए२ दिल२ (२१ २ २) कभी नहीं हो सकता है
जिक्र-ए-खुदा का वज्न २१ १२ अथवा २२ १२ होगा यह जिक्र२१ ए१ खुदा१२ (२१ १ १२) अथवा जिक्र२१ ए२ खुदा१२ (२१ २ १२) नहीं हो सकता है
राज-ए-माशूक का वज्न २१ २२१ अथवा २२ २२१ होगा यह राज२१ ए१ माशूक२२१ (२१ १ २२१) अथवा राज२१ ए२ माशूक२२१ (२१ २ २२१)  नहीं हो सकता है
आशा करता हूँ तथ्य स्पष्ट हुआ होगा |

# - ध्यान रहे कि इजाफत का नियम उर्दू भाषा को अरबी तथा फारसी भाषा से मिला है तथा यह उर्दू के भाषा व्याकरण में मान्य है परन्तु हिन्दी के भाषा व्याकरण में मान्य नहीं है इसलिए इजाफत केवल उन शब्दों में किया जाना चाहिए जो मूलतः अरबी, फारसी के हो| संस्कृत निष्ठ शब्दों में इजाफत नियम मान्य नहीं है
जैसे - 'दिल का दर्द' को 'दर्द-ए-दिल' तो किया जा सकता है परन्तु 'ह्रदय की पीर' को 'पीरे ह्रदय' नहीं किया जा सकता है, यह अशुद्ध प्रयोग है

# - हिन्दी और उर्दू के शब्द को मिला कर इज़ाफत कर देना भी गलत व अस्वीकृत है  जैसे - दिले-नादां की जगह हृदये-नादां करना सर्वथा अनुचित है | यह भाषा के प्रयोग का हास्यास्पद, अमान्य व अस्वीकृत रूप है

# - एक साथ एक से अधिक कई इजाफत की जा सकती है
उदाहरण -
कहूँ क्या खूबी-ए-औजा-ए-अबना-ए-जमाँ ग़ालिब
बदी की उसने, जिससे हमने की थी बारह नेकी
परन्तु याद रखें उर्दू शायरी में एक साथ तीन से अधिक हर्फ़-ए-इजाफत के प्रयोग को दोष माना गया है
(फारसी शायरी में एक साथ ४ इजाफत का प्रयोग मान्य हैं परन्तु ४ से अधिक का प्रयोग ऐब माना गया है)

चंद अशाअर में इज़ाफत का प्रयोग देखें -

जहाँ तेरा नक़्श-ए-कदम देखते हैं
खयबां खयाबां इरम देखते हैं
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं    -(मिर्ज़ा ग़ालिब)
(१२२, १२२, १२२, १२२)

अहल-ए-हिम्मत मंजिल-ए-मक़सूद तक आ ही गये
बन्दा-ए-तकदीर किस्मत का गिला करते रहे  - (चकबस्त)     
(२१२२, २१२२, २१२२, २१२)

गम-ए-जिन्दागी को 'अदम' साथ लेकर
कहाँ जा रहे हो सवेरे सवेरे  - (अब्दुल हमीद 'अदम')
(१२२, १२२, १२२, १२२)

इब्तिदा-ए- इश्क है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या - (मीर तकी 'मीर')
(२१२२, २१२२, २१२)

7 टिप्‍पणियां:

  1. इससे अच्छा पाठ और उदाहरण कही नहीं मिलेगा । The best one

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका योगदान ग़ज़ल इतिहास मे सदैव याद रखा जायेगा

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं
  4. Bahot bahot shukriya apka sara rasta asaan kardiya aapne..itni asaani se aor simply samjha diya ..great

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्कृष्ट जानकारी , धन्यवाद ।
    www.kavitavishv.com

    जवाब देंहटाएं