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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

क्रम ४ - बहर परिचय

ग़ज़ल कुछ निश्चित धुनों पर कही जाती है यह धुनें दो मात्राओं (लघु १ और दीर्घ २) के क्रम से बनती हैं, यदि पुराने गानों पर गौर करें तो पायेंगे कि अधिकतर सदाबहार गाने ऐसे हैं जो किन्हीं 'विशिष्ट' धुनों पर लिखे गए हैं,

ऐसा क्यों होता है कि, जब हम किसी गाने के बोल गुनगुनाते हैं और लय के उसी उतार चढाव पर अलाप लेते हैं तो लगता है जैसे बोल और अलाप में कोई अंतर नहीं है,
जैसे एक गाना है –
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
के जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए   

अब जब हम बार बार इसके बोल को गुनगुगाते हैं और फिर अचानक ही बोल कि जगह यह अलाप लेते हैं
ललालला, लललाला, ललालला, लाला 
तो भी हमको ऐसा लगता है कि हम गाना के बोल ही गुनगुना रहे हैं, इसका कारण यह है कि यह ललालला.... उस गाने की धुन है इस धुन पर ही इस गाने को लिखा गया है ग़ज़ल भी इस तरह की धुनों पर कही जाती है.अरूज शास्त्र में इस तरह की अनेक धुनों को ही “बह्र” कहा गया है, ग़ज़ल की विभिन्न धुनों में एक प्रवाह और लयात्मकता होती है धुन की लयात्मकता और प्रवाह के कारण ही ग़ज़ल लयात्मक हो जाती है     

आप जान चुके हैं कि लय की एक निश्चित मात्रा पर ही पूरी ग़ज़ल लिखी जाती है
आईये अब इसको और समझते हैं, कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं इनको एक ही उतार चढाव में पढ़ने का प्रयास करें -

राम आये,  राम आये,  राम आये,  राम आये
लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाललाला
रोज सोचा, रोज देखा,  रोज पाया,  रोज खोया
लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाललाला
मुस्कुराना, मुस्कुराना, मुस्कुराना, मुस्कुराना
लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाललाला
जब लिखेंगे, गीत सावन, की फुहारों, पर लिखेंगे
लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाललाला

आप पाते हैं कि इस धुन में एक विशिष्ठ मात्रिक क्रम को ही चार बार रखा गया है  इस मात्रा पुंज, गण या घटक को 'रुक्न' कहते हैं और इन प्रस्तुत पंक्तियों में यह मात्रिक क्रम है = लाललाला या “२१२२” या “दीर्घ लघु दीर्घ दीर्घ” या फाइलातुन और इसे ही चार बार रखने पर यह धुन बनी है जिसका मात्रिक क्रम होगा
 
  लाललाला,      लाललाला,      लाललाला,     लाललाला
दीर्घलघुदीर्घदीर्घ, दीर्घलघुदीर्घदीर्घ, दीर्घलघुदीर्घदीर्घ, दीर्घलघुदीर्घदीर्घ
गाफलामगाफगाफ, गाफलामगाफगाफ, गाफलामगाफगाफ, गाफलामगाफगाफ, 
  फाइलातुन,      फाइलातुन,      फाइलातुन,    फाइलातुन
   २१२२,          २१२२,       २१२२,          २१२२ 
 
इस मात्रिक क्रम (बह्र) का एक निश्चित नाम – “बह्र -ए- रमल मुसम्मन सालिम”

रुक्न का नाम - रमल
रुक्न - फाइलातुन (अरूजानुसार) सरल विधि में कहें तो - लाललाला       
रुक्न की मात्रा - २१२२ 

सीधे क्रम में देखें तो अब आप स्पष्ट समझ सकते हैं कि,  रुक्न के बहुवचन को अर्कान कहते हैं, रुक्न के निश्चित समूह से बहर के अर्कान बनते  हैं जैसे – २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ आदि.
इससे एक निश्चित धुन (बह्र) बनती है
इस धुन पर मिसरा लिखा जाता है,  
जैसे - भोर से ही, आ धमकती, गर्मियों की, ये दुपहरी

इस तरह के दो मिसरों से शेर बनता है, जैसे -

भोर से ही, आ धमकती, गर्मियों की, ये दुपहरी
बेहया मेह्, मां के जैसी, गर्मियों की, ये दुपहरी

शेर की पहली पंक्ति को “मिसरा ए उला” और दूसरी पंक्ति को “मिसरा ए सानी” कहते हैं

भोर से ही, आ धमकती, गर्मियों की, ये दुपहरी  - मिसरा ए उला
बेहया मेह्, मां के जैसी, गर्मियों की, ये दुपहरी   - मिसरा ए सानी

शेर के बहुवचन को अशआर कहते हैं और शेर के  समूह से ग़ज़ल बनती है

यह 'बहर' से एक बहुत छोटी मुलाक़ात है इसके बाद बड़ी मुलाक़ातों से पहले मात्रा गणना सीखान आवश्यक है  

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