चेतावनी : लेखक की जानकारी तथा अनुमति के बिना इस ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्रियों का कहीं, किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है | लेखक नामोल्लेख ब्लॉग वर्णन और लिंक दे कर ही आप लेख को उद्धरण के रूप में प्रयोग कर सकते हैं |

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

क्रम - ११ तक्तीअ

लेखमाला के पिछले क्रम में मात्रा गणना पर चर्चा समाप्त की गई थी, सिलसिलेवार ढंग से मात्रा गणना पर चर्चा के दौरान जिन लोगों ने प्रतिक्रिया के द्वारा चर्चा को आगे बढ़ाया और संशोधन तथा नए तथ्यों के द्वारा लेख को समृद्ध किया उनके प्रति विशेष आभार|
आज तक्तीअ के द्वारा मात्रा गणना के कुछ व्यवहारिक पक्षों पर चर्चा होगी| पिछले लेखों में मुफरद मुज़ाहिफ बहर और मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर पर संक्षिप्त चर्चा हो चुकी है इसलिए मुफरद सालिम के साथ साथ इन बहरों के कुछ उदाहरण भी शामिल कर लिया गया है
कुछ बहरें ऐसी होती हैं जिनमें कुछ विशेष छूट मिलाती है उन छूट को इंगित कर दिया है | लेख का मूल उद्देश्य तक्तीअ को व्यावहारिक रूप से समझना मात्र है, विस्तार से बातें फिर कभी...

लेख को तक्तीअ में बहर भेद अनुसार चार भाग में विभाजित किया गया है
अ) मुफरद सालिम    
ब) मुफरद मुज़ाहिफ   
स) मुरक्कब मुज़ाहिफ
द) मात्रिक बहर
(बहर के भेद को जानने के लिए पिछले लेख पढ़ें)

आईये तक्तीअ करें ...

सर्वप्रथम बहर में मिलाने वाली मुख्य छूट याद रखें जो सभी बहर में मिलाती है -
सभी बह्रों में हम अर्कान के अंत में एक अतिरिक्त लघु ले सकते हैं अर्थात यदि अरकान है - २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२ तो इसे हम २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२+१ भी कर सकते हैं यह छूट खूब प्रचिलित हैं और कई दफे शाइर इससे बड़े फ़ाइदे उठता है विशेष बात यह है कि इस छूट को एक बार किसी मिसरे में लेने पर अन्य मिसरों में इसे दोहराने की कोई बाध्यता नहीं है अर्थात हम ग़ज़ल में किसी भी मिसरे में इसे ले सकते हैं और अन्य मिसरों में इसे लेना अनिवार्य नहीं होगा, इसका उदाहरण हम कई ग़ज़लों को तक्तीअ करते हुए देखेंगे  

नोट - तक्तीअ में जहाँ मात्रा को गिराया गया है उस अक्षर + मात्रा को बोल्ड कर दिया है

अ) मुफरद सालिम बहरें

ग़ज़ल (१) = (१२२ / १२२/ १२२/ १२२) (बहर-ए-मुतकारिब की सालिम सूरत)

फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अज़ल मर गई तू कहाँ आते आते

मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते

नहीं खेल ऐ दाग यारों से कह दो
कि आती है उर्दू जबां आते आते

दाग़ देहलवी (मैकदा सलाम करे, पृष्ठ - १०३)

तक्तीअ (१) =

फिरे रा/ ह से वो / यहाँ आ / ते आते
१२२   /  १२२  /  १२२   /   २२
अज़ल मर / गई तू / कहाँ आ / ते आते
१२२   /  १२२  /  १२२   /   २२

मुझे या / द करने / से ये मुद् / दआ था
१२२   /  १२२  /  २२   /   १२२
निकल जा / दम हिच / कियाँ आ / ते आते
१२२     /  २२      /  १२२   /   २२

नहीं खे / ल ऐ दा / ग यारों / से कह दो
१२२   /  १२२  /  १२२   /   २२
कि आती / है उर्दू / जबां आ / ते आते
१२२   /  २२  /  १२२   /   २२

----------------------------------------------------------------
ग़ज़ल(२)=(१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२)(बहर-ए-हजज की सालिम सूरत)

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है

मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - ३७)

तक्तीअ (२) =

बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
१२२२    /   १२२२   /    २२२    / १२२२
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
१२२२    /    १२२२  /    २२२   /  १२२२

यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
१२२२     /     २२२   /    १२२२    /   १२२२
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
१२२२     /     २२२   /    २२२ / १२२२

नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
१२२२      /    १२२२   /    १२२२   / १२२२
(नकाब उलटे को अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे १२२२ माना गया है)  
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
१२२२       /     १२२२   /     २२२   / १२२२

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (३) = (११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२) (बहर-ए-कामिल की सालिम सूरत)

मुझे अपनी पस्ती की शर्म है, तेरी रिफअतों का ख्याल है
मगर अपने दिल का मैं क्या करूं इसे फिर भी शौके विसाल है

उन्हें ज़िद है अर्ज़-ए-विसाल से, मुझे शौक-ए-अर्ज-ए-विसाल है 
वही अब भी उनका जवाब है वही अब भी मेरा सवाल है

वो खुशी नहीं है वो दिल नहीं, मगर उनका साया सा हमनशीं
फकत एक गमज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
अख्तर शीरानी (प्रतिनिधि शाइरी: अख्तर शीरानी, पृष्ठ - ५१)

तक्तीअ (३) =

मुझे अपनी पस् / ती की शर्म है,/ तेरी रिफअतों / का ख्याल है
  १२      /      ११२१२   /    ११२१२    /   १२१२
मगर अपने दिल / का मैं क्या करूं / इसे फिर भी शौ / के विसाल है
११२२        /     ११२१२     /     १२     /   ११२१२
(मगर अपने को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रप/ने ११२ गिना गया है)

न्हें ज़िद है अर् / ज़े विसाल से,/ मुझे शौके अर् / जे विसाल है 
२१२         /     १२१२   /    १२   /   १२१२
ही अब भी उन / का जवाब है / वही अब भी मे / रा सवाल है
२        /     १२१२   /     १२   /   १२१२

वो खुशी नहीं / है वो दिल नहीं,/ मगर उनका सा/ या सा हमनशीं
१२१२    /     ११२१२   /    ११२२   /   ११२१२
(मगर उनका को अलिफ़ वस्ल द्वारा म/ग़/रुन/का ११२ गिना गया है)
फकत एक गम/ ज़दा याद है फकत इक फ़सुर्दा ख्याल है
११२१२    /     १२१२   /    ११२१२   /   १२१२
(फकत एक को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/ते/क ११२ गिना गया है)
(फकत इक़ को अलिफ़ वस्ल द्वारा फ़/क़/तिक ११२ गिना गया है)

{ध्यान दें कि इस ग़ज़ल के तीन अशआर में कुल ७२ लघु मात्राएं हैं जिनमें से ३१ मात्राओं को गिराया गया है जिसके कारण इस बहर को पढ़ने का अभ्यास न होने पर अटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है इसलिए मात्रा को कम से कम गिराना चाहिए, मगर मात्रा गिराने की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है}
----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (४) = (२२१२ / २२१२ / २२१२ / २२१२) (बहर-ए-रजज की सालिम सूरत)

अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये

जो ढो चुके हैं इल्म की गठरी अदब की बोरियां
वह आ रहे हैं मंच पर बन कर विदूषक देखिये

जनता के सेवक थे जो कल तक आज राजा हो गये
अब उनकी ताकत देखिये उनके समर्थक देखिये
- वीनस केसरी

तक्तीअ (४) =

अब हो रहे / हैं देश में / बदलाव व्या / पक देखिये
२२१२     /    २२१२ /    २२१२   / २२१२
शीशे के घर / में लग रहे / लोहे के फा / टक देखिये
२२२     /    २२१२ /    २२२   / २२१२

जो ढो चुके / हैं इल्म की / गठरी अदब / की बोरियां
२२१२     /    २२१२ /    २२१२   / २२१२
वह आ रहे / हैं मंच पर / बन कर विदू / षक देखिये
२२१२     /    २२१२ /    २२१२   / २२१२

जनता के से/ वक थे जो कल / तक आज रा / जा हो गये
२२१२     /    २२२ /    २२१२   / २२१२
अब उनकी ता/ कत देखिये / उनके समर् / थक देखिये
२२२     /    २२१२ /    २२१२   / २२१२

----------------------------------------------------------------

ब) मुफरद मुज़ाहिफ बहरें

ग़ज़ल (५) = (२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तेहार

रोज अखबारों में पढ़ कर ये ख्याल आया हमें
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले बहार

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार
- दुष्यंत कुमार, (साए में धूप, पृष्ठ -६३) 

तक्तीअ (५) =

(यह एक गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल है अर्थात इसमें रदीफ़ नहीं है और कई मिसरों के अंत में अतिरिक्त लघु लिया गया है इसे तक्तीअ में अंडर लाइन तथा मात्रा में +१ के द्वारा दर्शाया गया है)

अब किसी को / भी नज़र आ / ती नहीं को / ई दरा
   २१२२     /    २१२२   /    २१२२   / २१२ +१
घर की हर दी / वार पर चिप / के हैं इतने / इश् तेहा
   २२२     /    २१२२   /    २२२   / २+१

रोज अखबा / रों में पढ़ कर / ये खयाल आ / या हमें
 २१२२     /    २२२   /    २१२२   / २१२
(खयाल आया को अलिफ़ वस्ल द्वारा ख/या/ला/या १२२२ गिना गया है)
इस तरफ आ / ती तो हम भी / देखते फस् / ले बहा
  २१२२     /    २२२   /    २१२२   / २१२ +१

मैं बहुत कुछ / सोचता रह / ता हूँ पर कह / ता नहीं
 २१२२     /    २१२२   /    २२२   / २१२
बोलना भी / है मना सच / बोलना तो / दरकिना
२१२२     /    २१२२   /    २१२२   / २१२ +१

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (६) = (२१२२ / २१२२ / २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

सिर्फ अश्कों को परेशानी रही
गम बयां करने में आसानी रही

ज़िंदगी भर अक्ल के हामी रहे
अब समझते हैं कि नादानी रही

रफ़्ता रफ़्ता खुद के आदी हो गये
कुछ दिनों तक तो परेशानी रही
मनीष शुक्ला (ख़्वाब पत्थर हो गये, पृष्ठ -३)

तक्तीअ (६) =

सिर्फ अश्कों / को परेशा / नी रही
२१२२      /    २१२२  / २१२
गम बयां कर / ने में आ सा / नी रही
२१२२      /    २२२  / २१२

ज़िंदगी भर / अक्ल के हा / मी रहे
२१२२      /    २१२२  / २१२
अब समझते / हैं कि नादा / नी रही
२१२२      /    २१२२  / २१२

रफ़् ता रफ़्ता / खुद के आदी / हो गये
२२      /    २२२  / २१२
कुछ दिनों तक / तो परेशानी / रही
२१२२      /    २१२२  / २१२
----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (७) = (१२२२ / १२२२ / १२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)

चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है

जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - २४)

तक्तीअ (७) =

चरागों को / उछाला जा / रहा है
१२२२     /  १२२२    / १२२
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
१२२२     /  १२२२    / १२२

न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
१२२२     /  १२२२    / १२२
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी २२२ गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
१२२२     /  १२२२    / १२२

जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
१२२२     /  २२२    / २२
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
१२२२     /  २२२    / १२२
----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (८) = (२२१ / १२२२ / २२१ / १२२२) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)

आखों में भड़कती हैं आक्रोश की ज्वालाएं
हम लांघ गये शायद संतोष की सीमाएं

पग पग पे प्रतिष्ठित हैं पथ भ्रष्ट दुराचारी
इस नक़्शे में हम खुद को किस बिंदु पे दर्शाएं

वीरानी बिछा दी है मौसम के बुढ़ापे ने
कुछ गुल न खिला डालें यौवन की निराशाएं
एहतराम इस्लाम (है तो है, पृष्ठ -७)

तक्तीअ (८) =

आखों में / भडकती हैं / आक्रोश / की ज्वालाएं
   २२  /   १२२२   /   २२१  / २२२
हम लांघ / गये शायद / संतोष / की सीमाएं
   २२१  /   १२२२   /   २२१  / २२२

पग पग पे / प्रतिष्ठित हैं / पथ भ्रष्ट / दुराचारी
   २२  /   १२२२   /   २२१  / १२२२
इस नक़् शे / में हम खुद को / किस बिंदु / पे दर्शाएं
   २२  /       २२२   /     २२१  / २२२

वीरानी / बिछा दी है / मौसम के / बुढ़ापे ने
 २२  /   १२२२   /   २२    / १२२२
कुछ गुल न / खिला डालें / यौवन की / निराशाएं
   २२१    /   १२२२   /   २२   / १२२२
----------------------------------------------------------------

एक अन्य छूट जो हमें कई बहरों में देखने को मिलाती है -
एक नियम याद रखें - जिन अर्कान का अरूज़-ओ-ज़रब (आख़िरी रुक्न) मात्र २२ होता है उन सभी बहर के आख़िरी रुक्न को किसी भी मिसरे में २२ के स्थान पर  ११२ भी किया जा सकता है
उदाहरण - २१२२ / ११२२ / २२ को ग़ज़ल के किसी भी मिसरे पर
२१२२ / ११२२ / ११२ कर सकते हैं  

ग़ज़ल (९) = (२१२२ / ११२२ / २२ ) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

किस्मत अच्छी है कि घर जाते हैं
राह में सैकड़ों मर जाते हैं

सरफराज़ी में मज़ा बेशक है
लेकिन इस खेल में सर जाते हैं

ए मुज़फ्फ़र कई उस्ताद -ए- सुखन
मेरे अशआर कुतर जाते हैं
मुज़फ्फ़र हनफ़ी (मुज़फ्फ़र की ग़ज़लें पृष्ठ - १०३)

तक्तीअ (९) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)

किस्मत अच्छी / है कि घर जा / ते हैं
 २१२२    /    १२२  / २२ 
(किस्मत अच्छी को अलिफ़ वस्ल द्वारा किस्/म/तच्/छी २१२२ गिना गया है)
राह में सै / कड़ों मर जा / ते हैं
२१२२    /    १२२  / २२

सरफराज़ी / में मज़ा बे / शक है
२१२२    /  १२२    / २२
लेकिन इस खे / ल में सर जा / ते हैं
२१२२    /    १२२  / २२
('लेकिन इस' को  अलिफ़ वस्ल द्वारा ले/कि/निस २१२)

ए मुज़फ्फ़र / क उस्ता/ दे सुखन
२१२२    /    १२२  / १२
मेरे अशआ / र कुतर जा / ते हैं
२२    /    ११२२   / २२
----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (१० ) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
- निदा फाज़ली

तक्तीअ (१०) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)


विशेष - इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं| यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं, एक यह है दूसरी बहर का जिक्र क्रम ९ में होगा
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)

अपना ग़म ले / के कहीं औ / र न जाया / जाये
२२   /   १२२   /   ११२२  / २२
घर में बिखरी / हु चीज़ों / को सजाया / जाये
२२   /   १२२   /   १२२  / २२

बाग में जा / ने के आदा / ब हुआ कर / ते हैं
२१२२   /   ११२२   /   ११२२  / २२
किसी तितली / को न फूलों / से उड़ाया / जाये
२२   /   १२२   /   १२२  / २२

घर से मस्जिद / है बहुत दू / र चलो यूँ / कर लें
२२   /   १२२   /   ११२२  / २२
किसी रोते / हु बच्चे / को हँसाया / जाये
२२   /   १२२   /   १२२  / २२

ग़ज़ल (११) = (२१२२ / ११२२ / ११२२ / २२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

रंग उड़ता हुआ बिखरे हुए गेसू तेरे
हाय वो रात कि थमते न थे आँसू तेरे

अगले वक्तों की सी तहज़ीब है पहनावे में
फिर भी सौ तरह से बोल उठते हैं जादू तेरे

कुछ बता पैकर-ए-तकदीस-ए-हया सुबह-ए-अज़ल
किन बहानों से तराशे गये पहलू तेरे
शाज़ तमकनत (आवाज़ चली आती है, पृष्ठ - ३७)

तक्तीअ (११) =
(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)

रंग उड़ता / हु बिखरे / हु गेसू / तेरे
२१२२   /   १२२   /   १२२  / २२
हाय वो रा / त कि थमते / न थे आँसू  / तेरे
२१२२     /   ११२२    /   १२२    / २२

अगले वक्तों / की सी तहज़ी / ब है पहना / वे में
२२     /     ११२२   /     १२२  / २२
फिर भी सौ तर / ह से बोल उठ/ ते हैं जादू / तेरे
२२        /      १२२   /   ११२२   / २२
(मिसरे में तरह१२ को तर्ह२१ वज्न पर बांधा गया है जो कि उचित है)
(बोल उठते को अलिफ़ वसल द्वारा बो/लुठ/ते २२ गिना गया है)

कुछ बता पै/ करे तकदी / से हया सुब / हे अज़ल
२१२२     /   ११२२   /   ११२२   / ११२
किन बहानों / से तराशे / गये पहलू / तेरे
२१२२      /   १२२  /   १२२  / २२
(शे'र के मिसरा-ए-उला में बहुत खूबसूरती से बिना मात्रा गिराए इस कठिन बहर को निभाया गया है)

मुफरद सालिम तथा मुफरद मुज़ाहिफ बहरों के अशआर की तक्तीअ की गई अब मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों तथा मात्रिक बहर के कुछ अशआर की तक्तीअ करेंगे

मगर उससे पहले मुरक्कब बहर के बारे में संक्षेप में बात कर ली जाए -

मुरक्कब बहर - 'मुरक्कब' का शाब्दिक अर्थ होता है "मिश्रित"| जब हम किन्हीं दो मूल रुक्न के योग से किसी अर्कान का निर्माण करते हैं तो उसे मुरक्कब अर्कान और उस बहर को मुरक्कब बहर कहते हैं

जैसे - १२२२ (हजज का मूल रुक्न) तथा २१२२ (रमल का मूल रुक्न) के योग से एक अर्कान बनाते हैं -
१२२२ / २१२२ / १२२२ / २१२२
अर्थात
हजज / रमल / हजज / रमल
तो यह एक मुरक्कब बहर है
(इस बहर का नाम मुजारे या मुजारेअ या मुज़ारअ है )

मुरक्कब बहर में जब हम अर्कान से कोई मात्रा को घटा कर उप-रुक्न के द्वारा उप-बहर बनाते हैं तो उसे मुरक्कब मुज़ाहिफ बहर कहते हैं
मुरक्कब बह्रों की मूल बहर का उपयोग न के बराबर होता है अधिकतर इनकी उप-बहरें ही प्रचिलित हैं
आईये कुछ प्रचिलित मुरक्कब मुज़ाहिफ़ बहरों की तक्तीअ करें -

स) मुरक्कब मुज़ाहिफ बहरें

ग़ज़ल (१२) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}

दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक और वह बेज़ार
या इलाही ये माज़रा क्या है

मैंने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब (महाकवि ग़ालिब पृष्ठ -५५)

तक्तीअ (१२) =

(इस ग़ज़ल में अरूज-ओ-ज़रब (आखिरी रुक्न) को २२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)

इस बहर में एक विशेष छूट मिलाती है जिसके द्वारा हम सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) की मात्रा २१२२ को किसी भी मिसरे में गिरा कर ११२२ भी कर सकते हैं|
यह छूट मात्र दो बहर में मिलाती हैं,
पहली बहर का अर्कान २१२२ ११२२ ११२२ २२ है जिसका जिक्र पिछले लेख में किया जा चुका है दूसरी बहर यह है जिसमें यह विशेष छूट मिलाती है
(इस ग़ज़ल में तक्तीअ करते हुए सदर-ओ-इब्तिदा (पहले रुक्न) को २१२२ के स्थान पर जहाँ छूट अनुसार ११२२ किया गया है वहाँ नीचे मात्रा को ११२२ लिखा गया है, तक्तीअ को ध्यान से देखें)

दिले नादाँ / तुझे हुआ / क्या है
११२२    / १२१२    / २२
आखिर इस दर् / द की दवा / क्या है
२१२२    / १२१२    / २२
(आखिर इस को अलिफ़ वस्ल द्वारा आ/खि/रिस २१२ माना गया है)

हम हैं मुश्ता / क और वह / बेज़ा
२२    / १२१२    / २२ +१
या इलाही / ये माज़रा / क्या है
२१२२    / २१२    / २२

मैंने माना / कि कुछ नहीं / ग़ालिब
२२    / १२१२    / २२
मुफ्त हाथ आ/ तो बुरा / क्या है
२१२२    / २१२    / २२
(हाथ आए को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/था/ २२ माना गया है)


-----------------------------------------------------------------------
ग़ज़ल (१३) = (२१२२ १२१२ २२) {खफीफ की उप-बहर}

असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता

तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता

क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता
(मोमिन खां 'मोमिन')

तक्तीअ (१३) =

असर उसको / ज़रा नहीं / होता
११२२    / १२१२    / २२
(असर उसको... को अलिफ़ वस्ल द्वारा अ/स/रुस/को  ११२२ माना गया है)
रंज राहत / फिज़ा नहीं / होता
२१२२    / १२१२    / २२

तुम मेरे पा/ स होते हो / गोया,
२२    / १२२    / २२
जब कोई दू / सरा नहीं / होता
२२    / १२१२    / २२

क्यूं सुने अर् / जे-मुज़तरे / ‘मोमिन’
२१२२    / १२१२    / २२
सनम आख़िर / ख़ुदा नहीं / होता
११२२    / १२१२    / २२
(सनम आखिर... को अलिफ़ वस्ल द्वारा स/न/मा/खिर ११२२ माना गया है)

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (१४) = (१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२) {मुज़ारे की उप बहर}

कहीं पे सर कहीं खंज़र हवा में उड़ते हैं
हमारे शहर में पत्थर हवा में उड़ते हैं

जिन्हें जमीं पे सलीका नहीं है चलने का
कमाल -ए- फन हैं वो अक्सर हवा में उड़ते हैं

बसद ख़ुलूस तराशे गये थे बुत जिनके
सदाकतों के वो पैकर हवा में उड़ते हैं
रहमत अमरोहवी (इज़ाफा, पृष्ठ - २१)

तक्तीअ (१४) =

कहीं पे सर / कहीं खंज़र / हवा में उड़ / ते हैं
  १२२   /    १२२   /    १२२   / २२
हमारे शह / र में पत्थर / हवा में उड़ / ते हैं
  १२१२   /    १२२   /    १२२   / २२

जिन्हें जमीं / पे सलीका / नहीं है चल / ने का
  १२१२   /    १२२   /    १२२   / २२
कमाले फन / हैं वो अक्सर / हवा में उड़ / ते हैं
  १२१२   /    ११२२   /    १२२   / २२

बसद ख़ुलू / स तराशे / गये थे बुत / जिनके
  १२१२   /    ११२२   /    १२२   / २२
सदाकतों / के वो पैकर / हवा में उड़ / ते हैं
 १२१२   /    ११२२   /    १२२   / २२

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (१५) = (२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२) {मुजारे की उप-बहर}

उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब
लाजिम है बारिशों का मियां इम्तेहान अब

मुश्किल सफर है कोई नहीं सायबान अब
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब

कुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं
कुछ अनकहा है उसके मेरे दर्मियान अब
पवन कुमार (वाबस्ता, पृष्ठ -२५)

तक्तीअ (१५) =

उतरा है / खुदसरी पे / वो कच्चा म / कान अब
२२    /    २१२ /     २२१    / २१२
लाजिम है / बारिशों का / मियां इम्ते / हान अब
२२    /    २१२ /     १२२    / २१२

मुश्किल स / फर है को / नहीं साय / बान अब
२२१     /    २   /     १२२१    / २१२
है धूप   / रास्तों पे /   बहुत मेहर / बान अब
२२१    /    २१२ /     १२२१    / २१२

कुर्बत के / इन पलों में / यही सोच / ता हूँ मैं
२२    /    २१२ /     १२२१    / २
कुछ अनक / हा है उसके / मेरे दर्मि / यान अब
२२१    /    २ /     २२१    / २१२

----------------------------------------------------------------

द) मात्रिक बहर

एक मात्र मात्रिक बहर अरूज़ की बहरों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है यह बहर फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर आधारित है
इसका रुक्न २२ होता है जो कि उर्दू बहर में मुतदारिक २१२ से निर्मित माना जाता है और बहर का नाम लिखते (अधिकतर मुतदारिक नाम ही देखने को मिलाता है) 
इस मात्रिक बहर को उर्दू ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में असतिज़ा ने इस छंद पर ग़ज़लें कही है

इस बहर में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बहर में २२ को १० -११ बार तक दोहरा कर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ आदि अर्कान भी देखने को मिले हैं

अब आईये इस छंद(बहर) में मिलाने वाली छूट की बात कर लें -
 इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है| इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं 
जैसे-
२११ २२ = २२  २२
११२ २२ = २२ २२
इस तरह ही "यहाँ वहाँ"(१२१ २२) को भी मात्रा गिन कर २२ २२  किया  जाता है

यहाँ एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो ११ को २ नहीं गिनना चाहिए

इस फेलियर से बचने के लिए लयात्मकता पर ध्यान देना चाहिए
इस बह्र में कुछ स्थान हैं जहाँ १+१ = २ किया जाए तो लय भंग की स्थिति कम से कम होती है और लय तथा सुंदरता से बनी रहती है  
अभ्यास के द्वारा यह खुद समझ में आ जाता है कि कहाँ लय टूट रही है

(यदि इस बह्र की और बारीकियां समझनी हैं तो सुप्रसिद्ध शायर विज्ञान व्रत जी को कविता कोष में पढ़े,,,,, उनकी अधिकतर ग़ज़ल इस बह्र पर ही हैं और वहाँ आपको सुन्दर लय के साथ साथ ये सारे जुगाड भी मिलेंगे)

इस बह्र की मशहूर गज़ल के दो शेर लिखता हूँ

दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है

हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीश महल में इक इक चेहरा अपना लगता है

न १ + प १ = २
श १ + म १ = २
---------------------------------------------------------------------

आईये तक्तीअ करें

तक्तीअ में जहाँ १+१ = २ किया गया है मात्रा को १+१ लिखा गया है ध्यान से देखें  

ग़ज़ल (१६) = (२२/ २२ / २२ / २२ )

जाने क्या कुछ कर बैठा है
बहुत दिनों से घर बैठा है

वो मधुमास लिखे भी कैसे
शाखों पर पतझर बैठा है

जाग चुका है पर आखों में
ख़्वाबों का पैकर बैठा है
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - २७)

तक्तीअ (१६) =

जाने / क्या कुछ / कर बै / ठा है
२२ /    २२    /  २२  /२२ 
बहुत दि / नों  से / घर बै / ठा है
१२१ /    २२    /  २२  /२२

वो मधु / मास लि / खे भी / कैसे
२२ /    २ १ १   /  २२  /२२
शाखों / पर पत / झर बै / ठा है
२२ /    २२    /  २२  /२२

जाग चु / का है / पर आ / खों में
२ १ १  /    २२    /  २२  /२२
ख़्वाबों / का पै / कर बै / ठा है
२२ /    २२    /  २२  /२२

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (१७) = (२२/ २२ / २२ / २२)

जुगनू ही दीवाने निकले
अँधियारा झुठलाने निकले

वो तो सब की ही ज़द में था
किसके ठीक निशाने निकले

आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन जख्म पुराने निकले
विज्ञान व्रत (बाहर धूप खड़ी है, पृष्ठ - ५९)

तक्तीअ (१७) =

जुगनू / ही दी / वाने / निकले
२२ /    २२    /  २२  /२२
अँधिया / रा झुठ / लाने /  निकले
२२ /    २२    /  २२  /२२

वो तो /  सब की / ही ज़द / में था
२२ /    २२    /  २२  /२२
किसके / ठीक नि / शाने / निकले
२२ /    २ १ १  /  २२  /२२

आहों / का अं / दाज़ न / या था
२२ /    २२    / २ १ १  /२२
लेकिन / जख्म पु / राने / निकले
२२ /    २ १ १  /  २२  /२२

----------------------------------------------------------------

ग़ज़ल (१८) =(२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २)  

प्यार का रिश्ता ऐसा रिश्ता शबनम भी चिंगारी भी
यानी उनसे रोज ही झगड़ा और उन्ही से यारी भी

सूना पनघट देख के दिल पे क्या क्या गुजरी थी मत पूछ
हाथ से गिर कर टूट गई थी रंग भरी पिचकारी भी

उसका लहजा देख रहे हो लेकिन ये भी सोचा है
तल्ख बना देती है प्यारे इन्सां को बेकारी भी
अतीक इलाहाबादी (आगमन, पृष्ठ - ३९)

तक्तीअ (१८) =

प्यार का / रिश्ता / ऐसा / रिश्ता / शबनम / भी चिं / गारी / भी
२ १  /  २२ /  २२ /   २२ /    २२ /   २२   /  २२  / २
यानी / उनसे / रोज ही / झगड़ा / और उ / न्ही से / यारी / भी
२२   /  २२ /  २ १ /   २२ / २ १ १ /   २२   /  २२  / २

सूना / पनघट / देख के / दिल पे / क्या क्या / गुजरी / थी मत / पू
२२  /    २२ /  २ १ /   २२ /    २२ /   २२   /  २२  / २ +१
हाथ से / गिर कर / टूट ग / ई थी / रंग भ / री पिच / कारी / भी
२ १ १ /    २२ /  २ १ १ /   २२ / २ १ १ /   २२   /  २२  / २

उसका / लहजा / देख र / हे हो / लेकिन / ये भी / सोचा / है
२२    /  २२ / २ १ १/   २२ /    २२ /   २२   /  २२  / २
तल्ख ब / ना दे / ती है /  प्यारे /  इन्सां / को बे / कारी / भी
२ १ १  /  २२ /  २२ /   २२ /    २२ /   २२  /  २२  / २

-------------------------------------------------------------------------------------

क्रम - १० वाव ए अत्फ़

वाव -ए- अत्फ़

उर्दू भाषा में जब दो शब्दों के बीच 'व', 'तथा', 'और' आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वहाँ अत्फ़ का प्रयोग भी किया जा सकता है
उदाहरण - मीर व ग़ालिब, मीर तथा ग़ालिब, मीर और ग़ालिब को 'मीरो ग़ालिब' भी कहा जा सकता है, सुब्ह और शाम को 'सुब्हो शाम' कहा जा सकता है

इजाफत की तरह वाव-ए-अत्फ़ के सुब्हो-शाम को हिन्दी में हाईफन की सहायता से सुब्ह-ओ-शाम लिखा जाता है और पढते तथा मात्रा गिनते समय इसे सुब्हो-शाम के उच्चारण अनुसार पढ़ा और गिना जाता है
वाव अर्थात "ओ" की मूल मात्रा लघु होती है इसे भी जरूरत पड़ने पर उठा कर दीर्घ मान सकते हैं| अर्थात यहाँ भी मात्रा उठाने का नियम लागू हो सकता है
मात्रा गणना के बाकी नियम लगभग इजाफत की तरह है फिर भी एक उदाहरण के साथ समझ लेते हैं  
१) सुब्ह-ओ-शाम का वज्न सुब्हो शाम अनुसार २१२१ अथवा मात्रा उठा कर सुब्२ हो२ शा२ म१(२२२१) हो सकते है परन्तु यह सुब्ह२१ ओ१ शाम२१ और सुब्ह२१ ओ२ शाम२१ नहीं हो सकता है 

२) दीन और ईमान वाव -ए- अत्फ़ से दीनो-ईमान होता है परन्तु हिन्दी में इसे दीन-ओ- ईमान लिखा जायेगा   


३) दैर व हरम - "दैरो हरम" हो जायेगा परन्तु एक उर्दू एक अन्य भाषा के शब्द में वाव -ए- अत्फ़ नहीं लग सकता
उदाहरण - सुब्ह(उर्दू शब्द) और संध्या(हिन्दी शब्द) को "सुब्ह -ओ- संध्या" नहीं कर सकते हैं  

४) जहाँ पहले शब्द का आख़िरी व्यंजन स्वर युक्त होगा वहाँ वाव ए अत्फ़ को अलग से १ मात्रिक गिना जायेगा जिसे जरूरत पडने पर उठा कर २ मात्रिक कर सकते हैं
जैसे =पियाला-ओ-मीना (१२२ १ २२) या (१२२ २ २२)   

५) एक साथ एक से अधिक वाव-ए-अत्फ़ का प्रयोग भी किया जाता है
उदाहारण -
वह फिराक और वह विसाल कहाँ
वह शब-ओ-रोज-ओ-माह-ओ-साल कहाँ - (मिर्ज़ा ग़ालिब)

याद रखें एक साथ तीन से अधिक वाव-ए-अत्फ़ का प्रयोग ऐब माना गया है वैसे हुन्दुस्तनी जबान में शायरी करने वालों में अधिकतर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिसमें वाव -ए- अत्फ़ एक बार ही आ पाता है, दो बार का प्रयोग ही कम देखने को मिलता है तो चार बार प्रयोग तो बहुत दूर की बात है

यह लेख एक विशेष शेअर से समाप्त करता हूँ जिसमें अलिफ़ वस्ल, इजाफत और वाव-ए-अत्फ़ तीनों नियम का सुन्दर प्रयोग किया गया है -

तेरे जवाहर-ए-तरफ-ए-कुलह को क्या देखें
हम औजे-ताला-ए-लाल-ओ- गुहर को देखते हैं -(मिर्ज़ा ग़ालिब)  

क्रम - ९ इज़ाफत

इज़ाफत
 
जिस प्रकार हिन्दी में समास द्वारा दो शब्दों को अंतर्संबंधित किया जाता है वैसे ही उर्दू भाषा का अपना नियम है जिसे इज़ाफत कहते हैं और इसके द्वारा दो शब्दों को अंतर सम्बंधित किया जाता है जैसे ‘नादान दिल’ को ‘दिले नादाँ’, कहा जा सकता है |     

इस प्रकार कुछ अन्य उदाहरण देखें -

‘दिल का दर्द’ को ‘दर्द-ए-दिल’
पुर दर्द नग्मा को 'नग्मा-ए-पुरदर्द'
खुदा का जिक्र को 'जिक्र-ए-खुदा'
माशूक का राज़ को 'राज-ए-माशूक'.... आदि

याद रखें -
|- इज़ाफत में 'ए' को ''हर्फ़-ए-इजाफत''  कहते हैं
उदाहरण - 'नग्मा -ए- पुरदर्द' में 'ए' को 'हर्फ़-ए-इजाफत' कहते हैं

||- इजाफत में पहले शब्द को हर्फ-ए-उला कहेंगे
उदाहरण - 'नग्मा -ए- पुरदर्द' में "नग्मा" हर्फ़-ए-उला है

|||- इजाफत में दूसरे शब्द को हर्फ़-ए-सानी कहेंगे
उदाहरण - ' नग्मा -ए- पुरदर्द' में "पुरदर्द" हर्फ़-ए-सानी है


इजाफत दो प्रकार से होती है
१- इजाफत-ए-मक्लूबी
२- इजाफत-ए-खारिजी

१- इजाफत-ए-मक्लूबी - जब इजाफत में दोनों शब्दों के बीच से हर्फ़-ए-इज़ाफत अर्थात 'ए' हर्फ़ लुप्त (साईलेंट) हो जाता है
उदाहरण - खुश्क को चुके लब = लब-खुश्क,  जिसका अंजाम नेक हो = नेक-अंजाम
 
२- इजाफत-ए-खारिजी -जब इजाफत में दोनों शब्दों के बीच हर्फ़-ए-इज़ाफत अर्थात 'ए' हर्फ़ लगाते हैं तो उसे इज़ाफत ए खारिजी कहते हैं
इजफत-ए-खरिजी में तीन प्रकार के शब्द समूह को योजित किया (जोड़ा) जा सकता है
(|) का, के, कि  
(||) विशेषण
(|||) इस्तेलाम

(|) का, के, की - इसमें इजाफी हर्फों के बीच 'का', के, की आदि शब्द का अंतर्संबंध होता है
उदाहरण  -
फन का  कमाल  - 'कमाल-ए-फन' 
ग़ालिब का रकीब - 'रकीब-ए-ग़ालिब' 
दोस्त की आवाज़ - आवाज-ए-दोस्त
गम की शाम - शाम-ए-गम
मैखाना के दर का चराग - चराग-ए-दर-ए-मैखाना... आदि

(||) विशेषण - इसमें दो शब्द में संज्ञा और विशेषण का सम्बन्ध होता है
उदाहरण - "पुरदर्द नग्मा " में नग्मा संज्ञा है और "दर्द भरा" नग्मा का विशेषण है और यह इज़ाफत द्वारा होता है - नग्मा-ए-पुरदर्द  
एक अन्य उदाहरण देखें - 'मुख़्तसर मज़्मून' में मज्मून संज्ञा है और मुख़्तसर होना उसका विशेषण है तो यह होता है = मज़्मून-ए-मुख़्तसर

(|||) इस्तेलाम - जब केवल सूचना देने के लिए इजाफत का प्रयोग करते हैं तो उसे इस्तेलाम कहते हैं
उदाहरण - "लखनऊ शहर" में लखनऊ संज्ञा है शहर होना इसका विशेषण नहीं है, जब हम लखनऊ शहर लिखते हैं तो हम जानकारी देते हैं कि लखनऊ एक शहर है और इज़ाफत द्वारा यह होता है - "शहरे लखनऊ" 

इज़ाफत में मात्रा गणना का नियम देखें -
१) इजाफत के पश्चात उर्दू लिपि में शब्द अंतर्संबंधित (योजित) हो जाते हैं और उनको जोड़ कर लिखा जाता है

उदाहरण - ‘दिल का दर्द’ को ‘दर्दे दिल’ लिखा जाता है| हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न १ होता है

२) इज़ाफत के बाद दोनों शब्दों का क्रम आपस में पलट जाता है जो शब्द बाद में होता है वह पहले आ जाता है और उस पर ही हर्फ़-ए-इजाफत जुड़ता है  
उदाहरण - लखनऊ शहर "शहर-ए-लखनऊ" हो जाता है 

३) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर (जिसके व्यंजन में इजाफत के बाद "ए" स्वर को योजित किया जाता है) यदि लघु मात्रिक हो तो हर्फ-ए-इजाफत जुडने के बाद भी लघु मात्रिक ही रहता है
उदाहरण - "माशूक का राज़" इज़ाफत के बाद "राजे माशूक" हो जाता है इसमें राज़ का वज्न २१ है शब्द का आख़िरी व्यंजन अर्थात ज़ लघु मात्रिक है इसमें 'ए' जुड कर 'ज़े' होता है परन्तु यह फिर भी लघु मात्रिक ही रहता है और राजे माशूक का वज्न है २१ २२१ होता है  
इसका एक और उदाहरण दर्द-ए-दिल है जिसका वज्न २१ २ है
 
४) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि दो व्यंजन के योग से दीर्घ रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर दोनो व्यंजन का जोड़ टूट जाता है और वह दो स्वतंत्र लघु हो जाते
उदाहरण - 'नादान दिल' इज़ाफत द्वारा 'दिले नादाँ' हो जाता है इसमें दिल शब्द दो लघु व्यंजन के योग से दीर्घ मात्रिक है अर्थात इसका वज्न २ है मगर 'ए' जुड कर यह दिले हो जाता है और 'ले' स्वतंत्र लघु होता है इस प्रकार  इसके पहले का "दि" भी स्वतंत्र लघु हो जाता है और दिले नादाँ का वज्न ११ २२ होता है 
इसका एक और उदाहरण "इश्क के काबिल" - काबिले इश्क (२११ २१) है

५) हर्फ़-ए-उला का आख़िरी अक्षर यदि किसी स्वर योग के कारण दीर्घ मात्रिक रहता है तो इजाफत के बाद "ए" स्वर योजित होने पर उस आख़िरी अक्षर  की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पडता वह पूर्ववत दीर्घ रहता है और 'ए' को अलग से लिख कर लघु मात्रा गिना जाता है
उदाहरण - 'दीवार का साया' इज़ाफत द्वारा 'सायाए दीवार' हो जाता है इसमें साया २२ पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह पूर्ववत २२ रहता है और 'ए' की लघु मात्रा को अलग से गिनते है  अतः सायाए दीवार का वज्न हुआ - २२१ २२१ 

इसका एक और उदाहरण "शिकवा-ए-गम" है जिसका वज्न २२१ २ है    

उदाहरण स्वरूप कुछ और शब्दों का वज्न देख लें  कमाले फन - १२१ २
मकसदे हयात - २११ १२१
दीदाए तर - २२१ २ 
शहरे लखनऊ - २१ २१२
नग्माए पुरदर्द - २२१ २२१ 

६) इजाफत में एक बड़ी छूट लेते हुए ग़ज़लकार, हर्फ़-ए-इज़ाफत अथवा इजाफती हर्फ़ (जिस व्यंजन में 'ए' जुड़ा है) को लघु मात्रिक से उठा कर दीर्घ मात्रिक भी मान लेते हैं, अर्थात दर्दे दिल(२१२) को दर्२ दे२ दिल२ = २२२ भी किया जा सकता है|

यहाँ छूट के अंतर्गत जब हमें लघु चाहिए तो मात्रा गणना अनुसार लघु गिनते हैं और जब दीर्घ मात्रिक की जरूरत हो तो उठा कर दीर्घ मात्रिक भी मान लेते हैं इसलिए इसे हम मात्रा को उठाना भी कह सकते हैं| और यह कहा जा सकता है कि इज़ाफत में मात्रा उठाने की छूट मिलाती है|

कुछ लोग अज्ञानतावश यह सोचते हैं कि इजाफत में 'ए' दीर्घ मात्रिक होता है और इसे गिरा कर लाघु मात्रिक भी कर सकते हैं, परन्तु यह भूल है, वास्तव में इजाफत में 'ए' की मात्रा लघु होती है और यह जिस व्यंजन के साथ जुड जाये उसे भी लघु कर देता है (जैसा कि नियम २ और ३ में बताया गया है)    

७) इज़ाफत में यदि दूसरे शब्द अर्थात हर्फ़-ए-सानी का अंत न से होता है तो "न" हटा कर उसके पहले के अक्षर में "अं" स्वर जुड जाता है 
जैसे - नादान दिल - "दिल-ए-नादान" नहीं होता बल्कि 'दिल-ए-नादां'(११२२) हो जाता है इसे "दिले नादान" लिखना अनुचित है


याद रखें यदि दूसरा शब्द 'न' से समाप्त हो रहा हो परन्तु वह शब्द संज्ञा हो तो "न" को लुप्त नहीं करते
उदाहरण = मुल्क-ए-हिंदुस्तान
(हिन्दुस्तान एक संज्ञा है इसलिए इसे मुल्के हिन्दोस्तां नहीं लिखंगे)

विशेष ध्यान दें -
# - देवनागरी लिपि में यदि हम “दर्दे दिल” शब्द में से 'दिल' हटा कर ‘दर्दे’ का अर्थ शब्दकोष में खोजें तो यह शब्द नहीं मिलेगा क्योकि शुद्ध शब्द ‘दर्द’ है तथा यदि हम 'ग़ालिब का दीवान' को हिन्दी में 'दीवाने ग़ालिब' लिख दें तो हिन्दी भाषा-भाषी इसका अन्य अर्थ ‘दीवाने हो चुके ग़ालिब’ भी निकाल सकता है, इन स्थितियों से निपटने के लिए उर्दू तथा हिन्दी के विद्वानों ने एक युक्ति खोजी है कि उर्दू के दीवाने ग़ालिब को हिन्दी में हाइफन की सहायता से "दीवान -ए- ग़ालिब" लिखा जाए और पढते समय इसे दीवाने ग़ालिब (२२१ २२) के उच्चारण से पढ़ा जाये इस प्रकार इजाफत को हिन्दी में तोड़ कर लिखते हैं परन्तु ग़ज़ल में ऐसे शब्द का प्रयोग करते समय इजाफत युक्त शब्द को उच्चारण के अनुसार अर्थात बिना तोड़े मात्रा गिनना चाहिए|

उदाहरण - 'दिले नादाँ' को दिल-ए-नादाँ तो लिखेंगे परन्तु इसका वज्न "दिले नादाँ"  के अनुसार ११ २२ होगा तथा जरूरत पडने पर 'ले' को दीर्घ मान कर १२ २२ रखा जा सकता है परन्तु इसे हिन्दी लिखे के अनुसार तोड़ कर वज्न नहीं गिना जा सकता है
अर्थात दिल-ए-नादाँ के अनुसार दिल२ ए१ नादाँ२२ (२ १ २२) अथवा दिल२ ए२ नादाँ२२ (२२२२) नहीं किया जा सकता है यह असंभव है और ऐसा करने पर शेर बे-बहर हो जायेगा
इसी प्रकार ‘दर्द-ए-दिल’ का वज्न २१२ अथवा २२२ हो सकता है| यह दर्द२१ ए१ दिल२ (२१ १ २) अथवा दर्द२१ ए२ दिल२ (२१ २ २) कभी नहीं हो सकता है
जिक्र-ए-खुदा का वज्न २१ १२ अथवा २२ १२ होगा यह जिक्र२१ ए१ खुदा१२ (२१ १ १२) अथवा जिक्र२१ ए२ खुदा१२ (२१ २ १२) नहीं हो सकता है
राज-ए-माशूक का वज्न २१ २२१ अथवा २२ २२१ होगा यह राज२१ ए१ माशूक२२१ (२१ १ २२१) अथवा राज२१ ए२ माशूक२२१ (२१ २ २२१)  नहीं हो सकता है
आशा करता हूँ तथ्य स्पष्ट हुआ होगा |

# - ध्यान रहे कि इजाफत का नियम उर्दू भाषा को अरबी तथा फारसी भाषा से मिला है तथा यह उर्दू के भाषा व्याकरण में मान्य है परन्तु हिन्दी के भाषा व्याकरण में मान्य नहीं है इसलिए इजाफत केवल उन शब्दों में किया जाना चाहिए जो मूलतः अरबी, फारसी के हो| संस्कृत निष्ठ शब्दों में इजाफत नियम मान्य नहीं है
जैसे - 'दिल का दर्द' को 'दर्द-ए-दिल' तो किया जा सकता है परन्तु 'ह्रदय की पीर' को 'पीरे ह्रदय' नहीं किया जा सकता है, यह अशुद्ध प्रयोग है

# - हिन्दी और उर्दू के शब्द को मिला कर इज़ाफत कर देना भी गलत व अस्वीकृत है  जैसे - दिले-नादां की जगह हृदये-नादां करना सर्वथा अनुचित है | यह भाषा के प्रयोग का हास्यास्पद, अमान्य व अस्वीकृत रूप है

# - एक साथ एक से अधिक कई इजाफत की जा सकती है
उदाहरण -
कहूँ क्या खूबी-ए-औजा-ए-अबना-ए-जमाँ ग़ालिब
बदी की उसने, जिससे हमने की थी बारह नेकी
परन्तु याद रखें उर्दू शायरी में एक साथ तीन से अधिक हर्फ़-ए-इजाफत के प्रयोग को दोष माना गया है
(फारसी शायरी में एक साथ ४ इजाफत का प्रयोग मान्य हैं परन्तु ४ से अधिक का प्रयोग ऐब माना गया है)

चंद अशाअर में इज़ाफत का प्रयोग देखें -

जहाँ तेरा नक़्श-ए-कदम देखते हैं
खयबां खयाबां इरम देखते हैं
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं    -(मिर्ज़ा ग़ालिब)
(१२२, १२२, १२२, १२२)

अहल-ए-हिम्मत मंजिल-ए-मक़सूद तक आ ही गये
बन्दा-ए-तकदीर किस्मत का गिला करते रहे  - (चकबस्त)     
(२१२२, २१२२, २१२२, २१२)

गम-ए-जिन्दागी को 'अदम' साथ लेकर
कहाँ जा रहे हो सवेरे सवेरे  - (अब्दुल हमीद 'अदम')
(१२२, १२२, १२२, १२२)

इब्तिदा-ए- इश्क है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या - (मीर तकी 'मीर')
(२१२२, २१२२, २१२)

क्रम - ८ अलिफ़ वस्ल

अलिफ़-वस्ल का नियम
अलिफ़-वस्ल वह विशेष पारिस्थिति है जिसमें दो शब्दों को वस्ल कर (जोड़ कर) मात्रा को उच्चारण अनुसार बदला जा सकता है | आईये जानते हैं कि वह विशेष परिस्थिति क्या होती है -

यदि किसी शब्द के अंत में ऐसा व्यंजन आये जिसमें मात्रा न लगी हो और उसके बाद के शब्द का प्रथमाक्षर "स्वर" हो तो उच्चारण अनुसार पहले शब्द के अंतिम व्यंजन और दूसरे शब्द के पहले स्वर का योग किया जा सकता है
उदाहरण - रात आ (रा२ त१ आ२) में 'रात' शब्द का आख़िरी अक्षर "त" व्यंजन है तथा इसमें कोई मात्रा नहीं लगी है और इसके बाद अगला शब्द "आ" एक स्वर है तो "रात+आ" को अलिफ़ वस्ल कर के 'राता' भी पढ़ा जा सकता है जिसका वज्न २१२ से बदल कर रा२ ता२ अर्थात २२ हो जायेगा

अलिफ़ वस्ल को मात्रा गणना में ली जाने वाली छूट के अंतर्गत रखा जा सकता है
 
अन्य उदाहरण देखें -
हम और तुम (२ २१ २) को हमौर तुम (१२१२) भी किया जा सकता है 
 तंग आ चुके (२१ २ १२)  को  तंगा चुके (२२ १२) भी किया जा सकता है 

जरूरी नहीं है कि ऐसा शाब्दिक संयोग होने पर आवश्यक रूप से अलिफ़ वस्ल हो,  अक्सर बह्र को निभाने के लिए ऐसा करना पडता है
उदाहरण स्वरूप कुछ शेअर देखें -

जिंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राह गुज़र याद आया -(मिर्ज़ा ग़ालिब)
(२१२२, ११२२, २२ - बहर-ए-रमल की एक मुज़ाहिफ सूरत)
यहाँ याद आया को यादाया अनुसार उच्चारण करके २२२ मात्रा गणना की गई है

जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
कहते हैं हम तुझको मुँह दिखलाएँ क्या
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
हो रहेगा कुछ न कुछ हम घबराएँ क्या  -(मिर्ज़ा ग़ालिब)
(२१२२, २१२२, २१२२, २१२ - बहर-ए-रमल की एक मुज़ाहिफ सूरत) 
यहाँ बाज़ आए को बाजाए अनुसार उच्चारण करके २२२ मात्रा गणना की गई है और फिर ए कि मात्रा को गिरा दिया गया है तथा सात आसमाँ को सातासमाँ अनुसार २२१२ मात्रा गिनी गई है  

अलिफ़ वस्ल निम्नलिखित स्वर के साथ होता है -
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं

तीन अशआर में एक साथ क्रमशः आ, ऊ, उ, अ, आ तथा अलिफ़ वस्ल का उदाहरण देखिये -

जो था आग आजकल क्या हो गया है
वो क्यों नर्म ऊन जैसा हो गया है  

तब उसकी अस्ल कीमत जान पाए
जब अपना दिल पराया हो गया है
''तो क्या रोज आप ही जीतेंगे मुझसे''
बस इसके बाद झगड़ा हो गया है  - (उदाहरण के लिए स्वरचित)
(१२२२, १२२२, १२२)
आग आजकल को आगाजकल अनुसार २२१२ गिना गया है
नर्म ऊन  को नर्मून अनुसार २२१ गिना गया है
तब उसकी को तबुसकी अनुसार १२२ गिना गया है
जब अपना को जबपना अनुसार १२२ गिना गया है
रोज आप को रोजाप अनुसार २२१ गिना गया है
बस इसके को बसिसके अनुसार १२२ गिना गया है  

एक दुर्लभ अरबी नज़्म के शेअर में अं स्वर अलिफ़ वस्ल होने का उदाहरण देखें - 
 
अदम चूं गश्त हस्ती रा मुकाबिल
दरो रक्से शुद अंदर हाल हासिल  -(शब्सतरो, समय= १२५०-१३२०, ईरान के सूफी कवि पृष्ठ - २३८)
(१२२२, १२२२, १२२)
शुद अंदर को शुदंदर अनुसार १२२ गिना गया है  

याद रखें
(|)- अलिफ़ वस्ल मात्रा में ली जाने वाली एक छूट है जो उच्चारण के कारण हमें मिलती है आवश्यक नहीं है कि तब उसकी(२२२) को हमेशा अलिफ़ वस्ल करके तबुसकी(१२२) ही पढ़ा जाये यह मात्रिक जरूरत होने पर ही १२२ के वज्न में गिना जायेगा
(||)- अलिफ़ वस्ल होने की स्थिति में भी शब्द को शुद्ध रूप से लिखा जायेगा अर्थात  तब उसकी(२२२) को १२२ अनुसार गिनने पर भी तबुसकी न लिख कर हमेशा  तब उसकी ही लिखेंगे  

क्रम ७ -मात्रा गिराने का नियम

मात्रा गिराने का नियम- वस्तुतः "मात्रा गिराने का नियम" कहना गलत है क्योकि मात्रा को गिराना अरूज़ शास्त्र में "नियम" के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत आता है | अरूज़ पर उर्दू लिपि में लिखी किताबों में यह 'नियम' के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत ही बताया जाता रहा है, परन्तु अब यह छूट इतनी अधिक ली जाती है कि नियम का स्वरूप धारण करती जा रही है इसलिए अब इसे मात्रा गिराने का नियम कहना भी गलत न होगा इसलिए आगे इसे नियम कह कर भी संबोधित किया जायेगा | मात्रा गिराने के नियमानुसार, उच्चारण अनुसार  तो हम एक मिसरे में अधिकाधिक मात्रा गिरा सकते हैं परन्तु उस्ताद शाइर हमेशा यह सलाह देते हैं कि ग़ज़ल में मात्रा कम से कम गिरानी चाहिए
यदि हम मात्रा गिराने के नियम की परिभाषा लिखें तो कुछ यूँ होगी -

" जब किसी बहर के अर्कान में जिस स्थान पर लघु मात्रिक अक्षर होना चाहिए उस स्थान पर दीर्घ मात्रिक अक्षर आ जाता है तो नियमतः कुछ विशेष अक्षरों को हम दीर्घ मात्रिक होते हुए भी दीर्घ स्वर में न पढ़ कर लघु स्वर की तरह कम जोर दे कर पढते हैं और दीर्घ मात्रिक होते हुए भी लघु मात्रिक मान लेते है इसे मात्रा का गिरना कहते हैं "

अब इस परिभाषा का उदाहारण भी देख लें - २१२२ (फ़ाइलातुन) में, पहले एक दीर्घ है फिर एक लघु फिर दो दीर्घ होता है, इसके अनुसार शब्द देखें - "कौन आया"  कौ२ न१ आ२ या२
और यदि हम लिखते हैं - "कोई आया" तो इसकी मात्रा होती है २२ २२(फैलुन फैलुन) को२ ई२ आ२ या२
परन्तु यदि हम चाहें तो "कोई आया" को  २१२२ (फाइलातुन) अनुसार भी गिनने की छूट है| देखें -
को२ ई१ आ२ या२
यहाँ ई की मात्रा २ को गिरा कर १ कर दिया गया है और पढते समय भी ई को दीर्घ स्वर अनुसार न पढ़ कर ऐसे पढेंगे कि लघु स्वर का बोध हो 
अर्थात "कोई आया"(२२ २२) को यदि  २१२२ मात्रिक मानना है तो इसे "कोइ आया" अनुसार उच्चारण अनुसार पढेंगे   

नोट - ग़ज़ल को लिपि बद्ध करते समय हमेशा शुद्ध रूप में लिखते हैं "कोई आया" को २१२२ मात्रिक मानने पर भी केवल उच्चारण को बदेंलेंगे अर्थात पढते समय "कोइ आया" पढेंगे परन्तु मात्रा गिराने के बाद भी "कोई आया" ही लिखेंगे 

इसलिए ऐसा कहते हैं कि, 'ग़ज़ल कही जाती है|' कहने से तात्पर्य यह है कि उच्चारण के अनुसार ही हम यह जान सकते हैं कि ग़ज़ल को किस बहर में कहा गया है यदि लिपि अनुसार मात्रा गणना करें तो कोई आया हमेशा २२२२ होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति "कोई आया" को उच्चरित करता है तो तुरंत पता चल जाता है कि पढ़ने वाले ने किस मात्रा अनुसार पढ़ा है २२२२ अनुसार अथवा २१२२ अनुसार यही हम कोई आया को २१२२ गिनने पर "कोइ आया"  लिखना शुरू कर दें तो धीरे धीरे लिपि का स्वरूप विकृत हो जायेगा और मानकता खत्म हो जायेगी इसलिए ऐसा भी नहीं किया जा सकता है
ग़ज़ल "लिखी" जाती है ऐसा भी कह सकते हैं परन्तु ऐसा वो लोग ही कह सकते हैं जो मात्रा गिराने की छूट कदापि न लें, तभी यह हो पायेगा कि उच्चारण और लिपि में समानता होगी और जो लिखा जायेगा वही जायेगा     
आशा करता हूँ तथ्य स्पष्ट हुआ होगा

आपको एक तथ्य से परिचित होना भी रुचिकर होगा कि प्राचीन भारतीय छन्दस भाषा में लिखे गये वेद पुराण आदि ग्रंथों के श्लोक में मात्रा गिराने का स्पष्ट नियम देखने को मिलता है| आज इसके विपरीत हिन्दी छन्द में मात्रा गिराना लगभग वर्जित है और अरूज में इस छूट को नियम के स्तर तक स्वीकार कर लिया गया है


मात्रा गिराने के नियम को पूरी तरह से जानने के लिए जिन बातों को जानना होगा वह हैं -

अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु मात्रिक कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
ब) शब्द में किन किन स्थान पर मात्रा गिरा सकते हैं और किन स्थान पर नहीं?
स) किन शब्दों की मात्रा को गिरा सकते हैं औत किन शब्दों की मात्रा को नहीं गिरा सकते ?


हम इन तीनों प्रश्नों का उत्तर क्रमानुसार खोजेंगे आगे यह पोस्ट तीन भाग अ) ब) स) द्वारा विभाजित है जिससे लेख में स्पष्ट विभाजन हो सके तथा बातें आपस में न उलझें  

नोट - याद रखें "स्वर" कहने पर "अ - अः" स्वर का बोध होता है, व्यंजन कहने पर "क - ज्ञ" व्यंजन का बोध होता है तथा अक्षर कहने पर "स्वर" अथवा "व्यंजन" अथवा "व्यंजन + स्वर" का बोध होता है, पढते समय यह ध्यान दें कि स्वर, व्यंजन तथा अक्षर में से क्या लिखा गया है

-----------------------------------------------------------------------------------------
अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
इस प्रश्न के साथ एक और प्रश्न उठता है हम उसे भी जोड़ कर दो प्रश्न तैयार करते हैं

१) जिस प्रकार दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं क्या लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ कर सकते हैं ?
२) हम कौन कौन से दीर्घ मात्रिक अक्षर को लघु मात्रिक कर सकते हैं ?

पहले प्रश्न का उत्तर है - सामान्यतः नहीं, हम लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ मात्रिक नहीं कर सकते, यदि किसी उच्चारण के अनुसार लघु मात्रिक, दीर्घ मात्रिक हो रहा है जैसे - पत्र२१ में "प" दीर्घ हो रहा है तो इसे मात्रा उठाना नहीं कह सकते क्योकि यहाँ उच्चारण अनुसार अनिवार्य रूप से मात्रा दीर्घ हो रही है, जबकि मात्रा गिराने में यह छूट है कि जब जरूरत हो गिरा लें और जब जरूरत हो न गिराएँ  
(परन्तु ग़ज़ल की मात्रा गणना में इस बात के कई अपवाद मिलाते हैं कि लघु मात्रिक को दीर्घ मात्रिक माना जाता है इसकी चर्चा हम क्रम - ७ में करेंगे)

दूसरे प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत थोडा बड़ा है और इसका उत्तर पाने के लिए पहले हमें यह याद करना चाहिए कि अक्षर कितने प्रकार से दीर्घ मात्रिक बनते हैं फिर उसमें से विभाजन करेंगे कि किस प्रकार को गिरा सकते हैं किसे नहीं

इस लेखमाला में क्रम -४ (बहर परिचय तथा मात्रा गणना) में क्रमांक १ से ९ तक लघु तथा दीर्ध मात्रिक अक्षरों को विभाजित किया गया है, यदि उस सारिणी को ले लें तो बात अधिक स्पष्ट हो जायेगी| क्रमांकों के अंत में मात्रा गिराने से सम्बन्धित नोट लाल रंग से लिख दिया है, देखिये  -

क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं

यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं 

यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं

इनमें से केवल आ ई ऊ ए ओ स्वर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते हैं जो "आ, ई, ऊ, ए, ओ" स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते न ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो ऐ, औ, अं के योग से दीर्घ हुए हों
उदाहरण =
मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं 
आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं
स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं

क्रमांक ४.
४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम = २  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैं|  दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं 
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मल को गिरा कर १ नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते   

४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  असमय = अ/स/मय =  अ१ स१ मय२ = ११२     
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|   


यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है अ१ स१ और मय२ को हम ४.१ अनुसार नहीं गिरा सकते     

क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है

उदाहरण –
तुम शब्द में 'त' '' के साथ जुड कर 'तु' होता है(क्रमांक २ अनुसार), तु एक मात्रिक है और तुम शब्द में भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार)  और बोलते समय तु+म को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

 

ऐसे दो मात्रिक को नहीं गिरा कर लघु नहीं कर सकते

५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२  
  


यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ=१ म१ और धुर२ को हम ५.१ अनुसार नहीं गिरा सकते     


क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,   
इसके और उदाहरण देखें = गिरि

ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते

६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे –  सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१

यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ१ व+इ१     

क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् २ चा २ = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)

आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१  
कार्य = का+र् / य = कार् २  य १ = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२ 
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२

 
क्रमांक ७ (१) अनुसार दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते

७ (२) अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /त= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें 
बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = २२
दोस्तों = २१२
मस्ताना = २२२
मुस्कान = २२१       
संस्कार= २१२१
    

क्रमांक ७ (२) अनुसार हस्व व्यंजन स्वयं लघु होता है

क्रमांक ८. (१) - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं   
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
क्रमांक ८. (१) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं


८. (२) यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२ 

क्रमांक ८. (२) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं

८. (३) संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं 
उदाहरण =
प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२, पत्रों = २२   

क्रमांक ८. (३) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वर के जुडने से दीर्घ होते हैं तथा यह क्रमांक ३ के अनुसार लघु हो सकते हैं 

८ (४) उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क = २१२१ ('नु' अक्षर लघु होते हुए भी 'क्र' के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)      

क्रमांक ८. (४) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं

क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा

क्रमांक ९ अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं

अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकते, परन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है|
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें = "क्रमांक ३ अनुसार" मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि 'ऐ' स्वर तथा 'ऐ' स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते है| जैसे - "जै" २ को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप "है" "हैं" और "मैं" को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है अभी अनेक नियम और हैं जिनको जानना आवश्यक है पर उसे पहले कुछ अशआर की तक्तीअ की जाये जिसमें मात्रा को गिराया गया हो
उदाहरण - १
जिंदगी में आज पहली बार मुझको डर लगा
उसने मुझ पर फूल फेंका था मुझे पत्थर लगा

तू मुझे काँटा समझता है तो मुझसे बच के चल
राह का पत्थर समझता है तो फिर ठोकर लगा

आगे आगे मैं नहीं होता कभी नज्मी मगर
आज भी पथराव में पहला मुझे पत्थर लगा
(अख्तर नज्मी)
नोट - जहाँ मात्रा गिराई गई है मिसरे में वो अक्षर और मात्रा बोल्ड करके दर्शाया गया है आप देखें और मिलान करें कि जहाँ मात्रा गिराई गई है वह शब्द ऊपर बताए नियम अनुसार सही है अथवा नहीं 

जिंदगी में / आज पहली / बार मुझको / डर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२ 
उसने मुझ पर / फूल फेंका / था मुझे पत् / थर लगा
  २२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२

तू मुझे काँ / टा समझता / है तो मुझसे / बच के चल
   २१२२  /   २१२२   /    २२२   /   २२२
राह का पत् / थर समझता / है तो फिर ठो / कर लगा
   २१२२  /   २१२२   /    २२२   /   २१२२

गे आगे / मैं नहीं हो / ता कभी नज् / मी मगर
  २२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२
आज भी पथ / राव में पह / ला मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२

उदाहरण - २

उसे अबके वफाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझको अपने घर जाने की जल्दी थी

मैं अपनी मुट्ठियों में कैद कर लेता जमीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी

वो शाखों से जुदा होते हुए पत्ते पे हँसते थे  
बड़े जिन्दा नज़र थे जिनको मर जाने की जल्दी थी
(राहत इन्दौरी)

उसे अबके / वफाओं से / गुज़र जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२   /  १२२२   /   २२२
मगर इस बा/ र मुझको अप/ ने घर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    २२२    /   २२२

मैं अपनी मुट् / ठियों में कै / द कर लेता / जमीनों को
२२२     /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मगर मेरे / क़बीले को / बिखर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   २२२

वो शाखों से / जुदा होते / हुए पत्ते / पे हँसते थे 
२२२    /  १२२२   /  १२२२   /   १२२२
बड़े जिन्दा / नज़र थे जिन / को मर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    २२२    /   २२२

उदाहरण - ३

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं

एक कब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिसमें तहखानों से तहखाने लगे हैं
(दुष्यंत कुमार)

कैसे मंज़र / सामने आ / ने लगे हैं
  २२२  /   २१२२   /  २१२२
गाते गाते / लोग चिल्ला / ने लगे हैं
  २२२  /   २१२२   /  २१२२

अब तो इस ता / लाब का पा / नी बदल दो
      २२२  /   २१२२   /  २१२२
ये कँवल के /  फूल कुम्हला / ने लगे हैं
    २१२२  /    २१२२   /  २१२२

एक कब्रिस् / तान में घर / मिल रहा है
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
जिसमें तहखा / नों से तहखा / ने लगे हैं
  २२२  /   २२२   /  २१२२


इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि हम किन दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं
अब मात्रा गिराने को काफी हद तक समझ चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि कौन सा दीर्घ मात्रिक गिरेगा और कौन सा नहीं गिरेगा|
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
ब) अब हम इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं कि शब्द में किस स्थान का दीर्घ गिर सकता है और किस स्थान का नहीं गिर सकता - नियम अ के अनुसार हम जिन दीर्घ को गिरा कर लघु मात्रिक गिन सकते हैं शब्द में उनका स्थान भी सुनिश्चित है अर्थात हम शब्द के किसी भी स्थान पर स्थापित दीर्घ अक्षर को अ नियम अनुसार  नहीं गिरा सकते
उदाहरण - पाया २२ को पाय अनुसार उच्चारण कर के २१ गिन सकते हैं परन्तु पया अनुसार १२ नहीं गिन सकते

प्रश्न उठता है कि, जब पा और या दोनों में एक ही नियम (क्रमांक ३ अनुसार) लागू है तो ऐसा क्यों कि 'या' को गिरा सकते हैं 'पा' को नहीं ? इसका उत्तर यह है कि हम शब्द के केवल अंतिम दीर्घ मात्रिक अक्षर को ही गिरा सकते हैं शब्द के आख़िरी अक्षर के अतिरिक्त किसी और अक्षर को नहीं गिरा सकते
कुछ और उदाहरण देखें -
उसूलों - १२२ को गिरा कर केवल १२१ कर सकते हैं इसमें हम "सू" को गिरा कर ११२ नहीं कर सकते क्योकि 'सू'  अक्षर शब्द के अंत में नहीं है  
तो - २ को गिरा कर १ कर सकते हैं क्योकि यह शब्द का आख़िरी अक्षर है 
बोलो - २२ को गिरा कर २१ अनुसार गिन सकते हैं 
(पोस्ट के अंत में और उदाहरण देखें)

नोट - इस नियम में कुछ अपवाद भी देख लें -
कोई, मेरा, तेरा
शब्द में अपवाद स्वरूप पहले अक्षर को भी गिरा सकते हैं)     

कोई - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
मेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
तेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
-----------------------------------------------------------------------------------------
अब यह भी स्पष्ट है कि शब्द में किन स्थान पर दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं

स) अब यह जानना शेष है कि किन शब्दों की मात्रा को कदापि नहीं गिरा सकते -

१) हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - (|)- "मीरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में आ रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२) को "मीर" उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते| "मीरा" शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
(||)- "आगरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "रा" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२) को "आगर" उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकते| "आगरा" शब्द सदैव २१२ ही रहेगा | इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा

२) ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में "ना" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "ना" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए  परन्तु अब इस नियम में काफी छूट ले जाने लगे है क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं
उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है  और लगभग स्वीकार्य है | मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२) को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए
यह भी याद रखें कि यह नियम केवल हिन्दी के तत्सम शब्दों के लिए है | उर्दू के शब्दों के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है क्योकि उर्दू की शब्दावली में तद्भव शब्द नहीं पाए जाते
(अगर किसी उर्दू शब्द का बदला हुआ रूप प्रचलन में आया है तो वह  शब्द उर्दू भाषा से से किसी और भाषा में जाने के कारण बदला है जैसे उर्दू का अलविदाअ २१२१ हिन्दी में अलविदा २१२ हो गया, सहीह(१२१) ब्बदल कर सही(१२)  हो गया शुरुअ (१२१) बदल कर शुरू(१२) हो गया मन्अ(२१) बदल कर मना(१२) हो गया, और ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका स्वरूप बदल गया मगर इनको उर्दू का तद्भव शब्द कहना गलत होगा )


_______________________________________________________
अब जब सारे नियम साझा हो चुके हैं तो कुछ ऐसे शब्द को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता हूँ जिनकी मात्रा को गिराया जा सकता है

नोट - इसमें जो मात्रा लघु है उसे '१' से दर्शाया गया है 
जो २ मात्रिक है परन्तु गिरा कर लघु नहीं किया जा सकता उसे '२' से दर्शाया गया है
जो २ मात्रिक है परन्तु गिरा कर लघु कर सकते हैं उसे '#' से दर्शाया गया है

राम - २१
नजर - १२
कोई - ##
 मेरा - ##
तेरा - ##
और - २१ अथवा २
क्यों - २
सत्य - २१
को - #
मैं - #
है - #
हैं - #
सौ - २
बिछड़े - २#
तू - #
जाते - २#
तूने - २#
मुझको - २#

निवेदन है कि ऐसी एक सूचि आप भी बना कर कमेन्ट में लिखें
------------------------------------------------------------------------------------------------
मात्रा गिराने के बाद मात्रा गणना से सम्बन्धित कुछ अन्य बातें जिनका ध्यान रखना आवश्यक है -
स्पष्ट कर दिया जाये कि किसी(१२) को गिरा गर  किसि (११) कर सकते हैं परन्तु इसे हम मात्रा गणना क्रमांक ६.१ अनुसार दीर्घ मात्रिक नहीं मन सकते "किसी" मात्रा गिरने के बाद ११ होगा और सदैव दो स्वतंत्र लघु ही रहेगा किसी दशा में दीर्घ नहीं हो सकता |
इसी प्रकार आशिकी (२१२) को गिरा कर आशिकि २११ कर सकते हीं परन्तु यह २२ नहीं हो सकता    
परन्तु इसका भी अपवाद मौजूद है उसे भी देखें - और(२१) में पहले अक्षर को अपवाद स्वरूप गिराते हैं तथा अर अनुसार पढते हुए "दीर्घ" मात्रिक मान लेते हैं| यहाँ याद रखें कि "और" में "र" नहीं गिरता इसलिए "औ" लिख कर इसे लघु मात्रिक नहीं मानना चाहिए| यह अनुचित है |   

याद रखे -


कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके दो या दो से अधिक उच्चारण प्रचिलित और मान्य हैं
जैसे राहबर(२१२) के साथ रहबर(२२) भी मान्य है मगर यह मात्रा गिराने के नियम के कारण नहीं है,इस प्रकार के कुछ और शब्द देखें -

१ - तरह (१२) - तर्ह (२१)
२ - राहजन (२१२) - रहजन (२२)
३ - दीपावली (२२१२) - दीवाली (२२२) - दिवाली (१२२)
४ - दीवाना (२२२) - दिवाना (१२२)
५ - नदी (१२) - नद्दी (२२)
६ - रखी (१२) - रक्खी (२२)
७ - उठी (१२) - उट्ठी (२२)
८ - शुरुअ (१२१) - शुरू (१२)
९ - सहीह (१२१) - सही (१२)
१० - शाम्अ (२१) - शमा (१२)
११ - अलविदाअ (२१२१) - अलविदा (२१२)
१२ - ग्लास (२१) - गिलास (१२१)
१३ - जियादः (१२२) - ज्यादा (२२)  
१४ - वगर्ना (१२२) - वर्ना (२२) 
१५ - आईना (२२२) - आइना (२१२ )
१६ - एक (२१) - इक (२)   ........ आदि

नोट - इनमें से कुछ शब्द में पहला शब्द 'तत्सम रूप' और दूसरा रूप 'तद्भव रूप' है,

कुछ शब्द में उस्तादों द्वारा छूट लिए जाने के कारण दूसरा रूप प्रचलन में आ गया और सर्वमान्य हो गया

कुछ शब्द उर्दू से हिन्दी में आ कर अपना उच्चारण बदल बैठे

उर्दू से हिन्दे में आने वाले शब्दों के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि अधिकाधिक उस रूप का प्रयोग करें जो सूचि में पहले लिखा है, बदले रूप का प्रयोग करने से बचाना चाहिए परन्तु प्रयोग निषेध भी नहीं है

हिन्दी में ऐसे अनेकानेक शब्द हैं जो तद्भव रूप में प्रचिलित हैं उन पर भी यह बात लागू होती है

जैसे - "दीपावली" लिखना श्रेष्ठ है दीवाली लिखना "श्रेष्ठ" और "दिवाली" लिखना स्वीकार्य

(यह बात यहाँ स्पष्ट करना इसलिए भी आवश्यक था कि कहीं इसे भी मात्रा गिराना नियम के अंतर्गत मान कर लोग भ्रमित न हों)

लेख का अंत एक दुर्लभ ग़ज़ल को साझा करते हुए करना चाहता हूँ | इस ग़ज़ल में विशेष यह है कि हिन्दी के तत्सम शब्दों का सुन्दर प्रयोग देखने को मिलाता है और ग़ज़ल २० वी शताब्दी के चौथे दशक की है (अर्थात १९३१ से १९४० के बीच के किसी समय की)  शायर के नाम स्वरूप "दीन" का उल्लेख मिलाता है
जहाँ मात्रा गिरी है बोल्ड कर दिया है

(२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२)
खिल रही है आज कैसी भूमि तल पर चांदनी
खोजती फिरती है किसको आज घर घर चांदनी

घन घटा घूंघट हटा मुस्का है कुछ ऋतु शरद
मारी मारी फिरती है इस हेतु दर दर चांदनी

रात की तो बात क्या दिन में भी बन कर कुंदकास
छा रहती है बराबर भूमि तल पर चांदनी

सेत सारी* युक्त प्यारी की  छटा के सामने
जंचती है ज्यों फूल के आगे है पीतर चांदनी
(सेत सारी - श्वेत साड़ी, सफ़ेद साड़ी)

स्वच्छता मेरे ह्रदय की देख लेगी जब कभी
सत्य कहता हूँ कि कंप जायेगी थर थर चांदनी 

नोट - यह ग़ज़ल इसलिए भी साझा की है कि तत्सम शब्दावली के लिए कही बात बहुतहद तक सत्य सिद्ध होती है, आप भी ऐसी ग़ज़ल खोजें जिसमें तत्सम शब्दावली का प्र्य्ग किया गया हो और देखें कि क्या तत्सम शब्द की मात्रा गिराई गई है 
एक निवेदन
मात्रा गिराने का लेख लिखना अत्यधिक दुष्कर है क्योकि इसमें लिख कर उस बात स्पष्ट करना है जो उच्चारण अनुसार स्पष्ट होती है इसलिए अवश्य ही कुछ जगह पर बातें उलझ गई होंगी, आप उन स्थान का जिक्र भी करें तो मैं उसे और स्पष्ट करने की कोशिश करूँगा|
मात्रा गिराने का कोई स्पष्ट लेख आज तक मुझे नहीं मिला है इसलिए निश्चित ही कई बातें ऐसी होंगी जो छूट गई होंगी यदि आपके संज्ञान में आये तो कृपया साझा करें
साथ ही आप यदि ऐसी विधि सुझा सके जिससे मात्रा गिराने की कवायद को और सरल रूप से साझा किया जा सके तो अवश्य बताने की कृपा करें